काशी का इतिहास | Kashi Ka Itihas

काशी का इतिहास : मोतीचंद्र | Kashi Ka Itihas : Moti chandra

काशी का इतिहास : मोतीचंद्र | Kashi Ka Itihas : Moti chandra के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : काशी का इतिहास है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Moti chandra | Moti chandra की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 16 MB है | पुस्तक में कुल 512 पृष्ठ हैं |नीचे काशी का इतिहास का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | काशी का इतिहास पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, india

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पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 16 MB
कुल पृष्ठ : 512

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दो शब्द
आज से करीव पन्द्रह वर्ष पहले काशी का इतिहास लिखने की मुझे प्रेरणा हुई। अनेक कार्यों में व्यग्न रहते हुए भी अपनी नगरी के भूतकालीन चित्र देखने का लोभ मैं सवरण न कर सको। सामग्री की तलाश में तो ऐसा मालूम पड़ता था कि नगरी के इतिहास की सामग्री विपुल होगी, पर जैसे-जैसे काम आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे पता चलने लगा कि नगरी का इतिहास एक ऐसे रूढिगत ढांचे में ढल गया था जिसमें तीर्थ से सवधित धार्मिक कृत्यो और पठन-पाठन का ही मुख्य स्थान था, इतिहास तो नगर के लिए गौण था, पर छानबीन करने से यह भी पता चला कि वाराणसी का तीर्थ रूप तो नगरी के अनेक रूपो में एक था। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण वाराणसी का बहुत प्राचीन काल से व्यापारिक महत्त्व था। उसके तीर्थ तथा धार्मिक क्षेत्र बनने के प्रधान कारण नि सन्देह वहां के व्यापारी रहे होगे । इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारत में धर्म-प्रचार में व्यापारियो का, चाहे वे हिन्दू, बौद्ध अथवा जैन कोई भी हो, बडा हाथ था। वाराणसी में तो हाल तक व्यापारियों के बल पर ही धर्म-प्रचार और सस्कृत शिक्षा चल रही थी ।
धर्म, शिक्षा और व्यापार से वाराणसी का घना सम्वन्ध होने के कारण नगरी का इतिहास केवल राजनीतिक इतिहास न रहकर एक ऐसी संस्कृति का इतिहास बन गया, जिसमें भारतीयता का पूरा दर्शन होता है। बनारस के सास्कृतिक इतिहास की सामग्री सीमित होते हुए भी जहाँ तक संभव हो सका है, पुरातत्त्व, साहित्य और पुराने कागजातो, अभिलेखो इत्यादि के आधार पर नगर के वहूरगी जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया गया है। समय के बदलते चलचित्र का स्पष्ट प्रभाव वाराणसी के इतिहास पर भी दीख पडता है, पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वाराणसी की संस्कृति का जो नक्शा बहुत प्राचीन काल में वना, वह अनेक परिवर्तनों के होते हुए भी मृल में जैसा का तैसा बना रहा । प्राचीनता की परिपोषक इस नगरी के प्रति लोगो का रोष हो सकता है तथा नगर की मध्यकालीन वनावट, गन्दगी और ठगहारियो के प्रति लोगो का आक्रोश ठीक भी है । पर इन सब कमजोरियो के होते हुए भी यह तो मानना ही पडेगा कि बनारस उस सम्यता का सर्वदा परिपोषक रहा है, जिसे हम भारतीय सभ्यता कहते हैं और जिसके बनाने में अनेक मत मतान्तर और विचार धाराओं का सहयोग रहा है। यह नगरी हिन्दू विचारधारा की तो केन्द्रस्थली थी ही पर इसमें सन्देह नहीं कि बुद्ध के पहले भी यह ज्ञान का प्रधान केन्द्र थी। अशोक के युग से वहाँ बौद्ध धर्म फूला फला। तीर्थंकर पाश्र्वनाथ की जन्मस्थली होने के कारण जैन भी नगरी पर अपना अधिकार मानते हैं। इस तरह धर्मों और संस्कृतियों का पवित्र सगम बन जाने पर वाराणसी भारत के कोने-कोने में बसने वालो का पवित्र स्थल बन गयी। अगर एक सीमित स्थल में सारे भारत की झांकी लेनी हो तो बनारस ही ऐसा शहर मिलेगा। विविध भाषाओं के बोलने वाले, नाना वेष-भूषाओं

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2 Comments
  1. HindiApni says

    Aapne achhi jankari share kiya hain Thanks.

    1. admin says

      your welcome sir/mam.

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