बीनू का सपना : अखिलेश श्रीवास्तव | Beenu Ka Sapna : Akhilesh Srivastava

बीनू का सपना : अखिलेश श्रीवास्तव  | Beenu Ka Sapna : Akhilesh Srivastava

बीनू का सपना : अखिलेश श्रीवास्तव | Beenu Ka Sapna : Akhilesh Srivastava के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : बीनू का सपना है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Akhilesh Srivastava | Akhilesh Srivastava की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 3 MB है | पुस्तक में कुल 68 पृष्ठ हैं |नीचे बीनू का सपना का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | बीनू का सपना पुस्तक की श्रेणियां हैं : Uncategorized, children, Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Beenu Ka Sapna | This Book is written by Akhilesh Srivastava | To Read and Download More Books written by Akhilesh Srivastava in Hindi, Please Click : | The size of this book is 3 MB | This Book has 68 Pages | The Download link of the book "Beenu Ka Sapna" is given above, you can downlaod Beenu Ka Sapna from the above link for free | Beenu Ka Sapna is posted under following categories Uncategorized, children, Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 3 MB
कुल पृष्ठ : 68

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पक्का सीढ़ीदार घाट बना था और घाट से सटा हुआ एक प्राचीन मंदिर था जो परशुराम मंदिर के नाम से प्रसिद्ध था। इस मंदिर के अन्दर अलग-अलग कमरों में परशुराम जी, हनुमान जी, दुर्गा जी, शंकर भगवान तथा राम, लक्ष्मण और सीता जी की मूर्तियाँ स्थापित थीं।
बीनू की दादी तथा मुहल्ले की कुछ और औरतें जैसे ऊषा की दादी, निर्मला की अम्मा तथा पारस की बुआ आदि मुँह अँधेरे नियमित रूप से नदी नहाने जाती थीं। दादी की अँगुली पकड़े बीनू भी उनके साथ हो लेता था। परशुराम मंदिर के पीछे स्थित घाट पर दाहिनी तरफ औरतें तथा थोड़ा हट कर बायीं तरफ पुरुष स्नान करते थे। घाट की सीढ़ियों की कुल संख्या हमेशा ही बीनू के लिए एक पहेली बनी रही क्योंकि कुछ सीढ़ियाँ हर समय पानी के अन्दर ही डूबी रहती थी। बीनू के मन में अनेकों बार इच्छा हुई थी कि वह नीचे तक उतर कर सीढ़ियों की कुल संख्या गिन डाले। लेकिन कभी भी ऐसा संभव न हो सका दादी जी उसे पानी के अन्दर डूबी दो-तीन सीढ़ियों से आगे जाने ही नहीं देती थीं। दादी जी स्वयं नहाने से पहले बीनू को नहला कर उसे अपने सूखे कपड़ों और पूजा की डोलची के पास बिठा देतीं उसके बाद स्वयं गले तक पानी में उतर कर खूब देर तक नहाती रहतीं। उन दिनों सवेरे-सवेरे नदी में नहाने वाले स्त्री-पुरुषों की भारी भीड़ देखते बनती थी।
नदी घाट से थोड़ा हट कर पश्चिम तरफ एक बगीचा भी था जिसमें आम, अमरूद, महुआ पीपल तथा नीम आदि के पन्द्रहबीस पेड़ थे। नदी नहाने वाले अधिकांश लोग इसी बगीचे की नीम से दातुन तोड़ कर दाँत साफ करते तथा नही चुकने के बाद पीपल की जड़ों पर जल चढ़ा कर पूजा किया करते थे। कुछ बड़े पेड़ों की
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बीन का सपना

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