अपश्चिम तीर्थकर महावीर | Apashchim Teerthkar Mahaveer

अपश्चिम तीर्थकर महावीर (दोनों भाग) : आचार्य रमेश | Apashchim Teerthkar Mahaveer (Both Parts) : Acharya Ramesh

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पुस्तक का साइज : 22 MB
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प्रकाशकीय भारतीय संस्कृति की प्राणी करुणा से ओत-प्रोत जीवनधारा की अमल, अमर प्रवाह यात्रा का प्रतिनिधित्व करने वाली श्रमण संस्कृति में साधुमार्ग का विशिष्ट महत्व है। साधुमार्गी परम्परा ने गुण पूजा के पवित्र भावों से समाज को प्रभावित करते हुए उत्कृष्ट पथ का दिशा निर्देश किया है। जीवन व्यवहारों को आत्मसंयम से निर्देशित कर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति हेतु मानव मात्र को दिशा बोध प्रदान करने वाली श्रमण संस्कृति की प्रतिनिधि धारा साधुमार्ग में ज्योतिर्घर, क्रांतदर्शी, शांत-क्रान्ति और समताधारी के सूत्रधार, आचार्यों के ज्योतिरत्न मालिका में वर्तमान शासन नायक, जिनशासन प्रद्योतक, सिरीयाल प्रतिबोधक, "आचार्य प्रवर 1008 श्री रामलालजी महाराज सा." अद्भुत प्रतिभा और मेधा के धनी तथा आदर्श संगठन कौशल के साकार रूप है।
अपनी अनन्य शास्त्रीय निष्ठा और आगमिक ग्रंथों के तलस्पर्शी शान के साथ ही आचार्य श्री रामेश क्रिया के क्षेत्र में अपने स्वयं के आचरण और अपनी शिष्य मंडली के शुद्धाचार हेतु अहर्निश सजग रहते हैं। शास्त्र के दिशा निर्देश को अपनी जीवन साधना के बल पर अपने उज्ज्वल चारित्र और दृढ़ आचार के द्वारा परम पूज्य आचार्य प्रवर ने जन-जन के समक्ष प्रत्यक्ष किया है। आचार्य श्री रामेश ने अपनी विहार यात्रा में इस पवित्र भूमि के ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, गर-गर पाँव पैदल चलते हुए इस देश के सभी धर्म, पंथ एवं जाति के निवासियों को अमृतमय उपदेशों से लाभान्वित किया है। जन-जन २) साध निरंतर संवाद करते हुए उनके सुख-दुख में उन्हें धैर्य बंधाते स-ससजनों की अनन्त जिज्ञासाओं का अविचल प्रज्ञा से समाधान करते हुए आचार्य श्री रामेश अपनी मर्यादा के साथ विचरण कर रहे हैं।
पशु वर्षों पूर्व भगवान महावीर के सिद्धांतों एवं जीवनशैली पर फु अनभिज्ञों द्वारा अन्यथा लेखन किया गया। साधुमार्गी संघ के
जा मान पीरदानजी पारख तथा श्री हरिसिंहजी रांका में उपचय जिज्ञारा प्रस्तुत की । इसकी शोध करते हुए विदुषी महासती

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