कर्त्तव्य : गोविन्ददास | Kartavya : Govinddas के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : कर्त्तव्य है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Govind das | Govind das की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Govind das | इस पुस्तक का कुल साइज 15.2 MB है | पुस्तक में कुल 197 पृष्ठ हैं |नीचे कर्त्तव्य का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कर्त्तव्य पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Kartavya | This Book is written by Govind das | To Read and Download More Books written by Govind das in Hindi, Please Click : Govind das | The size of this book is 15.2 MB | This Book has 197 Pages | The Download link of the book "Kartavya" is given above, you can downlaod Kartavya from the above link for free | Kartavya is posted under following categories Stories, Novels & Plays |
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इस सम्बन्ध में हमारे देश के धर्माचार्यों आदि नै जौ युक्तियां दी हैं उनसे भी मेरा पूरा समाधान न होता था। बहुत सोचने-विचारने के पश्चात् मैंने इसका जो रहस्य समझा है उसी विचार (Idea) पर इस नाटक की रचना हुई है। इतने पर भी मैंने यह नाटक भगवान् रामचंद्र और भगवान् कृष्णचंद्र को मनुष्य मानकर ही लिखा है। यदि इन दोनों को मनुष्य मानकर भी कुछ लिखा जावे तो भी मैं कह सकता हैं कि पूर्वे अथवा पश्चिम, किसी भी हिंसा के किसी भी देश में, किसी भी साहित्यकार को ऐसे नायक नहीं मिले हैं, जैसे भारत के साहित्यकारों को राम और कृष्ण के रूप में मिले हैं। इसी प्रकार सीता के पति-प्रेम और राधा तथा गोपियों के विवाद्ध एवं अनन्य प्रेम के सदृश, प्रेम का वर्णन भी मुझे तो अंगरेजी-द्वारा, विदेशी साहित्य का निरन्तर अध्ययन करते रहने पर भी, किसी भी विदेशी साहित्य में पढ़ने को नहीं मिला। यूनान देश के महाकाव्य ईलिय' और 'ऑटेसी' के नायकनायिकाओं से रामायण और महाभारत के नायक-नायिकाओं की तुलना मुझे तो हास्यास्पद आन पड़ती है ।। | इस वेवा में राम और कृष्ण पर आज तक न जाने कितने साहित्यसेवियों ने लिखा है। जिन्होंने अन्य नायकों को अपनी कृतियों का नामक बनाकर लिला भी है उनमें कोई भी नायक इतने में न तो अब तक उठ सके हैं और न भविष्य में इसकी सम्भावना ही है। जिन नायकों पर सहस्रों वर्षों से इस देश के तत्ववेता और महाकवि लिखते आये हैं और जिन पर लाखों पृष्ठ लिखे जा चुके हैं, उन पर में कोई नवीन, स्वतंत्र या मौलिक रचना कर सकेंगा मह में कभी भी नहीं मान सकता; अतः जिस कवि कौं जो युक्ति मुझे रुचिकर हुई, मैंने उसे निस्संकोच इस रचना में ले लिया है। इसमें कुछ पद्य भी हैं, पर मैंने उन्हें प्राचीन कवियों की कृतियों में से ही लेना