कहाँ या क्यूँ : राम प्रसाद मिश्र | Kaha Ya Kyu : Raam Prasad Mishra

कहाँ या क्यूँ : राम प्रसाद मिश्र  |  Kaha Ya Kyu : Raam Prasad Mishra

कहाँ या क्यूँ : राम प्रसाद मिश्र | Kaha Ya Kyu : Raam Prasad Mishra के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : कहाँ या क्यूँ है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ram Prasad Mishra | Ram Prasad Mishra की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 6.3 MB है | पुस्तक में कुल 145 पृष्ठ हैं |नीचे कहाँ या क्यूँ का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कहाँ या क्यूँ पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Kaha Ya Kyu | This Book is written by Ram Prasad Mishra | To Read and Download More Books written by Ram Prasad Mishra in Hindi, Please Click : | The size of this book is 6.3 MB | This Book has 145 Pages | The Download link of the book " Kaha Ya Kyu" is given above, you can downlaod Kaha Ya Kyu from the above link for free | Kaha Ya Kyu is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 6.3 MB
कुल पृष्ठ : 145

यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

स्वालोचना
'कहाँ या क्यों?' भाग्यशाली उपन्यास है। 'पथ पर' लाने वाला! इसको 'पथ पर' का गुजरातो-अनुवाद ही निकला। इसके बाद 'मिस्टर अटल', 'एक कलाकार', 'कला का छोर', 'जागता गाँव' (एम. फिल. हुआ और परिवर्द्धित ‘कुछ खोता, कुछ पाता गाँव' रूप आंचलिक उपन्यास के रूप में बहुत प्रशसित हुआ), 'एक सड़ी हुई कौम', 'मसीहा' (ईसा पर ऐतिहासिक 'उपन्यास), 'पिटा हुआ मोहरा', ‘पण्डुि-ग्रन्थि', 'बीसवीं सदी' और अब 'दग' (लिख रहा हूँ) की लम्बी उपन्यास-यात्रा (कई उपन्यास नष्ट कर दिए पर चाद, खासकर 'सूरज की आवारा बेटी' की. आती है और कई बार बेचैन हो जाता हैं)। 'सब तज साहित्य भज' मंत्र बनाया, नित्य लेखन! 'कहाँ या क्यों?' को भूल गया क्योंकि अन्य उपन्यास ही नहीं, कविता, आलोचना इत्यादि साहित्य की सभी विधाओं में लिखता बेसुध! बस लिखना, जमाना देखते जमाना; दौडधूप तिकड़म, सम्मान-नियोजन, पुरस्कार-राजनीति, कुछ नहीं। एक नशा, एक जुनून, एक पागलपन।
अब जब इसका मुद्रणशोधन कर रहा हूँ तब चकित हैं; कथानक की रोचकता, प्रवाह, चित्रण, भाषा देखकर लगता ही नहीं कि यह प्रथम प्रकाशित उपन्यास है। दुलारेलाल भार्गव का संशोधन, श्रीमती सावित्री दुलारेलाल की प्रशसा, श्री कनु सुणावकर की प्रशस्ति 'लामिज़रेबल' से तुलना एवं गुजराती-- अनुवाद, कई लोगों के रोदन इत्यादि की याद आती है, ठीक लगती है। उपन्यास में 'फिल्मी टच' की चर्चा हुई थी, उसमें भी कुछ म लगता है। पर फ़िल्म भी कलाकृति हो सकती हैं। साहित्य से चलचित्र और चलचित्र से साहित्य प्रभावित होते रहे हैं। तब चलचित्र न देखता था, न समय था, न पैसा। बीच में देखे। अब बिल्कुल नहीं; न समय, न स्वास्थ्य। किन्तु उपन्यास यथार्थ से संपन्न हैं, कलात्मक है, रोचक हैं। बार-बार आँसू लाने वाली रचना उत्कृष्ट कलाकृति ही हो सकती हैं।

Share this page:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *