राधा कृष्ण साहित्य : युगलमूर्ति प्रसाद | Radha Krishna Sahitya : Yugalmurti Prasad के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : राधा कृष्ण साहित्य है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Unknown | इस पुस्तक का कुल साइज 6.4 MB है | पुस्तक में कुल 128 पृष्ठ हैं |नीचे राधा कृष्ण साहित्य का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | राधा कृष्ण साहित्य पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu
Name of the Book is : Radha Krishna Sahitya | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : Unknown | The size of this book is 6.4 MB | This Book has 128 Pages | The Download link of the book "Radha Krishna Sahitya" is given above, you can downlaod Radha Krishna Sahitya from the above link for free | Radha Krishna Sahitya is posted under following categories dharm, hindu |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
वह प्राण-प्यारा स्वयं हमें याद करेगा, और हमारा काम हो जायेगा मनुष्य जीवन सफल हो जायेगा, जीवन का परम लाभ मिल जायेगा। | जीवमात्र के परमलाभ की प्राप्ति हेतु जो कुछ अच्छा लगा ईश्रीराधामाधब प्रभु की कृपा से 'युगलमूर्तिप्रसाद ग्रन्थ' में संकलित करने की चेष्टा की गई है। जो आप श्रीमान् के कर-कमलों में बड़े ही संको के साथ समर्पित किया जाता है, क्योंकि इसमें महापुरुषों के वचन है, वेद शास्त्रों का सार है, भावुक भक्तों के आँसु है भक्तों की निधी है. रसिक का जीवन है, प्रेमियों का हृदय है।
इस ग्रन्थ के प्रकाशन में प्रभु के प्यारे कई भक्तों का सहयो मिला है, वो हमारे अभिन्न हृदय है, उनकी तारीफ करना आम प्रशंस होगी, न वो तारीफ चाहते है, वे तो ठाकुर सेवा करके ही कृतकृत्य । अपने को धन्य मानते हैं जो ठाकुर ने सेवा का मौका दिया। | आप सद के श्री चरणों में एक विनम् प्रार्थना है कि श्रीराध माधव-युगल मूर्ति प्रसाद ग्रन्थ का संग नित्य स्वाध्याय रूप से करे। ए बार तो यह ग्रन्थ आदि से अन्त तक अवश्य स्वाध्याय करे फिर जो ॥ आपको रुचिकर लगे उसे नित्य नियम से पढे-पढावे व इसका प्रचार के यह आपका है, आपके लिए ही साक्षात् ठाकुर आप पर कृपा करने आ तक पधारे है। आप हृदय खोलकर इनका स्वागत करें आस्वादन = करावें यही हृदय की अभिलाषा है।
| इसे मात्र ग्रन्थ रूप में ही न देखें ये साक्षात श्रीराधामाधव आप कृतकृत्य करने आपके कर कमलों में पधारे हैं। श्रीउद्धव श्रीमद्भागवतजी में श्री शोनकजी से कहते हैं--
स्वकीयं यद्ववेत्तेजस्तच्च भागवतेऽदधात् । तिरोधाय प्रविष्टोऽयं श्रीमद्भागवतार्णवम् ।।