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सफलता के शिखर की सीढियां : गीता प्रेस | Safalta Ke Shikhar Ki Seedhiyan : Geeta Press

सफलता के शिखर की सीढियां : गीता प्रेस | Safalta Ke Shikhar Ki Seedhiyan : Geeta Press

सफलता के शिखर की सीढियां : गीता प्रेस | Safalta Ke Shikhar Ki Seedhiyan : Geeta Press के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : सफलता के शिखर की सीढियां है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Geeta Press | Geeta Press की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 21.8 MB है | पुस्तक में कुल 93 पृष्ठ हैं |नीचे सफलता के शिखर की सीढियां का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सफलता के शिखर की सीढियां पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, gita-press, hindu, inspirational

Name of the Book is : Safalta Ke Shikhar Ki Seedhiyan | This Book is written by Geeta Press | To Read and Download More Books written by Geeta Press in Hindi, Please Click : | The size of this book is 21.8 MB | This Book has 93 Pages | The Download link of the book "Safalta Ke Shikhar Ki Seedhiyan" is given above, you can downlaod Safalta Ke Shikhar Ki Seedhiyan from the above link for free | Safalta Ke Shikhar Ki Seedhiyan is posted under following categories dharm, gita-press, hindu, inspirational |

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पुस्तक का साइज : 21.8 MB
कुल पृष्ठ : 93

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याद रखो—प्रेमकी मूल भित्ति त्याग है । त्यागके बिना प्रेमका प्रादुर्भाव नहीं होता। किसी वस्तु, पदार्थ, परिस्थिति, आश्रम या कर्मका त्याग
आवश्यक नहीं है। त्याग होना चाहिये, स्व सुख इच्छाका। इहलोक, परलोक तथा दिव्य लोकादिके भोग-सुखोकी ही नहीं, मोक्ष-सुखको इच्छाक लेश भी प्रेगमें बाधक है। जिसमें केवल प्रियतमके सुक्की ही एकमात्र सहज अभिलाषा और चेष्टा है, अन्य किसी प्रकारकी किसी भी वासना की कल्पना भी नहीं है। इस प्रकार लोक-परलोकके भोग तथा कैवल्य मोक्ष की वासनासे शून्य प्रियतमके सुखार्थ समस्त भोगत्यागका उपभोग ही प्रेम है। वह प्रेम हृदयकी वस्तु होता है, बाहर दिखानेकी नहीं। यह गुणरहित, कागनारहित, नित्य, अविच्छिन्न, सूक्ष्मतर, अनुभवरूप और क्षण-क्षणमें उत्तरोत्तर बढ़नेवाला होता है। इस प्रेम-समुद्रमें मधुरतम भायोकी अनन्त विचित्र सरल-कफ़ तर उसलती रहती हैं। प्रेमास्पद प्रियतमका सुख-साधन ही उन सारो तरङ्गका मूल कारण और परम उद्देश्य रहता है।

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2 Comments

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    अनिल दुबे

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