कृष्ण बाल माधुरी : गीता प्रेस हिंदी पुस्तक | Krishna Bal Madhuri : Geeta Press Hindi Book

कृष्ण बाल माधुरी : गीता प्रेस हिंदी पुस्तक | Krishna Bal Madhuri : Geeta Press Hindi Book

कृष्ण बाल माधुरी : गीता प्रेस हिंदी पुस्तक | Krishna Bal Madhuri : Geeta Press Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 14.39 MB है | पुस्तक में कुल 268 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, gita-press, hindu, Poetry

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पुस्तक का साइज : 14.39 MB
कुल पृष्ठ : 268

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पद पद-सख्या | पद धनु दुहत हरि देखत ग्वालनि न नान्हरिया गोपाल लाल नाहिने जगाइ सकतिं निरखि स्याम हलधर यसुसुकाने नैकु गोपालहि मोकीं दै री नैकु रह माखन द्ौं तुम कौ नैं कुहूं न दरद करति नंद-घरनि आनंद भरी नंद-घरनि सुतत भलौ पढ़ायी नंद जू के बारे कान्ह नंद-धाम खेलत हरि डोलत नंद बुलावत हैं गोपाल नंद महर के भावतें नंदहि कहति जसोदा रानी न्हात नंद सुधि करी स्याम की प्‌ पलना झूलौ मेरे लाल पियारे पलना स्याम झुलावति जननी पाँड़े नहिं भोग लगावन पावँ पालनै गोपाल झुलावि पाहनी करि दै तनक महौ पौढ़िऐ मैं रचि सेज बिछाई पौढ़े स्याम जननि गुन गावत प्रथम करी हरि माखन-चोरी प्रात भयौ जागौ गोपाल प्रात समय उठि सोबत सुत कौ ८ र७१ | प्रात समय द्घि मथत्ति जसोंदा ३५ श्र र६र रप्‌ शू०० र३े० नि ग्रे रे पड छू ढीप र४ १७३ श्प४ ९३ 4 ए्६६ रर २0९ २५९ २८९ र्८्श १२७ श्र५ फ फूली फिरति ग्वालि मन मैंरी ब बन तैं आवत धेनु चराए्‌ बन पहुँचत सुरभी लईं जाइ बल-मोहन दोउ करत बियारी बल-मोहन दोऊ अलसाने बलं-मोहन बन तैं दोउ आएं बलि-बलिं जाउँ मधुर सुर गावहुं बहुतै दुख हरि सोइ गयी री बातनि हीं सुत लाइ लियौ बाधौं आजु कौन तोहि छोरे बाबा मोकौं दुहन सिखायी बार-बार जसुमति सुत बोधति बाल गुपाल खेलौ मेरे तात । बाल-ब्रिनोद आँगन की डोलनि बाल-बिनोद खरो जिय भावत जाल-बिनोद भावती लीला बिहरत॑ गोपाल राह बेद-कमल-मुख परसति जननी बोलि लियौं बलरामहि जसुमति बुंदाबन देख्यौ नैद-नंदन बुंदाबन मोकौं अति भावत ब्रज घर-घर प्रगटी यह बात पट-सख्या ८द २८५ २९९ ९४८ १५० ३६० १०८ रट्ट श्०्श्‌ रेर६ यश ११५ ९२ घ्श्‌ था न ५0 प्छ २९२ २५७४ नेट दण्ड २८

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1 Comment
  1. SANDEEP KUMAR says

    VERY VERY THANKS FOR THESE BOOKS

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