अंडमान निकोबार की लोक कथाएँ : बलराम अग्रवाल | Andman nicobar ki lok kathayen : Balram Agrawal

अंडमान निकोबार की लोक कथाएँ : बलराम अग्रवाल | Andman nicobar ki lok kathayen : Balram Agrawal

अंडमान निकोबार की लोक कथाएँ : बलराम अग्रवाल | Andman nicobar ki lok kathayen : Balram Agrawal के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अंडमान निकोबार की लोक कथा है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Balram Agrawal | Balram Agrawal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 20.7 MB है | पुस्तक में कुल 121 पृष्ठ हैं |नीचे अंडमान निकोबार की लोक कथा का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अंडमान निकोबार की लोक कथा पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Andman nicobar ki lok kathayen | This Book is written by Balram Agrawal | To Read and Download More Books written by Balram Agrawal in Hindi, Please Click : | The size of this book is 20.7 MB | This Book has 121 Pages | The Download link of the book "Andman nicobar ki lok kathayen" is given above, you can downlaod Andman nicobar ki lok kathayen from the above link for free | Andman nicobar ki lok kathayen is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 20.7 MB
कुल पृष्ठ : 121

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प्रकाशक की ओर से
लोककथाएँ
किसी भी जाति/जनजाति/आदिमजाति के बीच पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से प्रचलित कथा-रचना को लोककथा कहा जाता हैं। अगर इन कथाओं के नायक धार्मिक पात्र रहे हों तो ये 'मिथक' कहलाती हैं। नैतिकता का संदेश देने वाली कथाएँ बोधकथा, नीति शिक्षण की कथाएँ नीतिकथा तथा किसी भावना-प्रधान मन्तव्य विशेष को रंजक शैली में प्रस्तुत करने वाली कथाएँ दृष्टांत कहलाती हैं। इसी क्रम में रूपक-कथा भी आती है। कथा-रचना में किसी मानवेतर प्राणी अथवा नीर्जीव वस्तु का रूपक प्रयोग अर्थ एवं प्रभाव की दृष्टि से उसकी व्यापकता और गहनता दोनों को ही बल प्रदान करता है। कुल मिलाकर यह कि मिथक, बोध, नीति, दृष्टांत एवं रूपक आदि के कथा रूप में आगामी पीढ़ी तक पहुँचाने
की परम्परा मानव-समाज के बीच संभवत: आदिकाल से ही रही हैं। इनमें लोकमंगल तथा लोकरंजन दोनों ही भावनाएँ एक साथ समाविष्ट रहीं हैं। संभवत: इसीलिए इन्हें 'लोककथा' नाम दिया गया हैं। इनके लिए यह नाम निश्चित रूप से सटीक भी हैं। इनमें जातियों का पुरातन इतिहास तथा पूर्वजों के संघर्ष व साहस की निधि सुरक्षित हैं।
जैसाकि 'काला पानी' की सज़ा भोग चुके क्रांतिकारी बाबा पृथ्वीसिंह आज़ाद ने अपनी आत्मकथा 'क्रांतिपथ का पथिक' में लिखा है कि अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में अनगिनत आदिम जातियाँ थीं। उनमें से अधिकांश को अंग्रेजों की गोलियों ने नष्ट कर डाला। इन दिनों प्रमुखतः 5 आदिम जनजातियाँ ही द्वीप समूह में शेष हैं-1, अण्डमानी. 2. निकोबारी, 3, जारवा, 4, ओंगी तथा 5, शोम्पेन । द्वीप समूह में प्रचलित अनेक लोककथाएँ अनेक कथाकारों द्वारा संकलित/संपादित की जा चुकी हैं। परन्तु श्रीयुत् प्रितिन रॉय द्वारा अंग्रेजी में संपादित 'ट्राइबल फोकटेल्स ऑफ अंडमान एंड निकोबार आइलैंड्स' को द्वीप-समूह की बची-खुची आदिम जनजातियों के बीच प्रचलित लोककथाओं का आधिकारिक संकलन माना जा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक उसी अंग्रेजी पुस्तक का हिन्दी-रूपांतर है। | हम श्रीयुत् प्रितिन रॉय के आभारी हैं कि उन्होंने पुस्तक के हिन्दी अनुवाद की अनुमति सहर्ष हमें प्रदान की। साथ ही हम प्रिय स्वप्नेश चौधरी के भी आभारी हैं जिन्होंने सभी लोककथाओं का नयनाभिराम चित्रांकन करके पुस्तक को अति आकर्षक रूप प्रदान किया है । कथाकार बलराम अग्रवाल ने लोककथाओं का शाब्दिक अनुवाद न करके इनका रोचक, रंजक व सरल भाषा में रूपांतरण प्रस्तुत किया है। पूर्ण विश्वास है कि हिन्दी-पाठकों के बीच ये लोककथाएँ पसंद की जाएँगी।
-विजय गोयल

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