फैक्ट्री क्लर्क की डायरी : च्यांग चिलुंग | Factory Clerk Ki Diary : Chyang Chilung के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : फैक्ट्री क्लर्क की डायरी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Chyang Chilung | Chyang Chilung की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Chyang Chilung | इस पुस्तक का कुल साइज 1.6 MB है | पुस्तक में कुल 72 पृष्ठ हैं |नीचे फैक्ट्री क्लर्क की डायरी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | फैक्ट्री क्लर्क की डायरी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Factory Clerk Ki Diary | This Book is written by Chyang Chilung | To Read and Download More Books written by Chyang Chilung in Hindi, Please Click : Chyang Chilung | The size of this book is 1.6 MB | This Book has 72 Pages | The Download link of the book "Factory Clerk Ki Diary" is given above, you can downlaod Factory Clerk Ki Diary from the above link for free | Factory Clerk Ki Diary is posted under following categories Biography, Stories, Novels & Plays |
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और सुंदर लिखते हैं। दिनभर आप मेहनत से काम करते हैं, किसी भी निदेशक से कहीं ज्यादा व्यस्त रहते हैं। पर आप एक सीमा तक किताबी कीड़े हैं और चीजों को सीधे रूप में देखते हैं। मैंने तो यही सीखा है। पूंजीवादी समाज में पैसे से हर काम हो सकता है। अपने देश में सारा काम संपर्क से होता है। यह स्थिति अगले चार-पाच वर्षों में नहीं बदलने जा रही है। हमारा कारखाना छोटा है और वहां छोटे कार्यकर्ता हैं। हमारी प्रतिष्ठा और पहुंच नहीं है। यदि हम अपने संपफाँ का फायदा नहीं उठाएंगे. यदि डोर अपनी तरफ नहीं खींचंग तो हम कभी आगे नहीं बढ़ पाएगे।"
भयंकर दृष्टिकोण में नहीं बता सकता कि मैं उनसे घृणा करता हैं या उनका सम्मान करती हैं।
| 12 मई, 1979
उपनिदेशक के हसत चहरे से सारे दाग लगभग गायब हो गए। | उन्होंने खुश होकर मुझे बताया, "लाओं वेई, आप मेरी एक मदद कर
हैं। क्या आप आज रात निदेशक चिन को अपने साथ मेरे घर जाने पर से आए? मुझे डर है कि वह नहीं आएंगे, इसलिए आपसे कह रहा
है।"
मैंने मन ही मन सोचा, “आप बड़े क्षुद्र आदमी हैं। बेटी की नौकरी के बदले आप उन्हें खाना खिलाना चाहते हैं। फिर यह सोचकर कि ल्यो मिग पहले एक अप्रशिक्षित पम्प मजदूर थे, बाद में संयोग से पाट में आ गए और धीरे-धीरे उन्नत कर उपनिदेशक बन गए। ऐस आदमी से और उम्मीद भी क्या की जा सकती हैं। फिर भी में उन घर खाने पर नहीं जाना चाहता था।
पहले जब भी ऐसा कोई अनचाहा निमंत्रण क्लिा, मैंने हमेशा पली | और बच्चे के बहाने उसे गल दिया। कभी कहता कि पत्नी बीमार हैं।
तो कभी कहता कि बच्चे को बुखार हैं। किसी न किसी बहाने में पीछा छुड़ा लेता था। मैंने आज भी एक बहाना बनाया, "मेरे बच्चे को
chandrakanata santati puri kitaab nahi daalte…