अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल : भास्करकुमार मिश्र | Amar Shahid Pandit Ram Prasad Bismil : Bhaskar Kumr Mishra के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Bhaskar kumar mishr | Bhaskar kumar mishr की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Bhaskar kumar mishr | इस पुस्तक का कुल साइज 9.3 MB है | पुस्तक में कुल 102 पृष्ठ हैं |नीचे अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, history
Name of the Book is : Amar Shahid Pandit Ram Prasad Bismil | This Book is written by Bhaskar kumar mishr | To Read and Download More Books written by Bhaskar kumar mishr in Hindi, Please Click : Bhaskar kumar mishr | The size of this book is 9.3 MB | This Book has 102 Pages | The Download link of the book "Amar Shahid Pandit Ram Prasad Bismil" is given above, you can downlaod Amar Shahid Pandit Ram Prasad Bismil from the above link for free | Amar Shahid Pandit Ram Prasad Bismil is posted under following categories Biography, history |
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आमुख
बात सन 1976 की है जब मैं इण्टर पास कर डी० ए० में स्वामी | शुकदेवानन्द महाविद्यालय में दाखिला लेने शाहजहाँपुर पहली बार आया था। लोगों
से पूछने पर पता चला कि बाबा विश्वनाथ मन्दिर शहौंपुर का एक प्रसिद्ध एवं दर्शनीय स्थल है । मैं तुरन्त ही बाबा विश्वनाथ के दर्शनार्थ यहाँ से चल पड़ा । लगभग एक घण्टे की पैदल यात्रा के बाद हम टाउनहाल पहुंथे । टाउनहाल में ही
नगरपालिका दफ्तर के पास बाबा विश्वनाथ क मन्दिर है । नगरपालिका द्वार के | सामने से गुजरते समय मेरी नजर वह लगी चार मूर्तियों पर पड़ी। मैं उत्कंठावश | ठहरकर इन मूर्तियों को देखने लगा । वे चार मूर्तियां काकोरी के चार अमर शहीद-पं० रामप्रसाद बिस्मिल', अश्प्मक उल्ला खाँ, डा० रोशन सिंह और राजेन्द्र
लाहिड़ी की थीं । इतिहास में ज्यादा रुचि न होते हुए भी हमने इतिहास के पन्नों | में इन चारो सपूतों के बारे में जानकारी एकत्रित करनी शुरू कर दी ।
समय बीतता गया । सांसारिक बंधन में बंधते, सांसारिक झंझटों में फंसते, उलझते यह कार्य दुष्कर-सा प्रतीत होने लगा । उन्ही दिनों संयोगवश मेरा चयन आदर्श इण्टर कालेज निगोही में प्रवक्ता पद हेतु हो गया । मैं यहाँ अध्यापन करने लगा । परन्तु मन पं० रामप्रसाद बिस्मिल की ओर से उत्कंठा से भरा रहा । तदुपरान्त एक बार फिर जिन्दगी में उतार-चढ़ाव आए और अन्ततः 1988 में मैंने वाणिज्य मंत्रालय नई दिल्ली में रागमा सेवा में ब्वाइन किया । फिर क्या था ? केन्द्रीय सचिवालय गुन्यार से सभी सम्व त स्रोत पढ़कर पं० रामप्रसाद बिस्मिल
के जीवनवृत्त को पुस्तकाकार रूप में संकलित कर आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए | मुझे अतीव प्रसन्नता का अनुभव हो रहा हैं ।
अगर मेरा यह प्रयास देश के नागरिकों में देशभक्ति की भावना जाग्रत करने,