सनतसुजातोय अध्यात्मशास्त्र : शंकराचार्य हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Sanatsujatoy Adhyaytmshstra : Shankaracharya Hindi Book Free PDF Download

सनतसुजातोय अध्यात्मशास्त्र : शंकराचार्य | Sanatsujatoy Adhyaytmshstra : Shankaracharya

सनतसुजातोय अध्यात्मशास्त्र : शंकराचार्य | Sanatsujatoy Adhyaytmshstra : Shankaracharya

सनतसुजातोय अध्यात्मशास्त्र : शंकराचार्य | Sanatsujatoy Adhyaytmshstra : Shankaracharya के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : सनतसुजातोय अध्यात्मशास्त्र है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shankaracharya | Shankaracharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 44 MB है | पुस्तक में कुल 590 पृष्ठ हैं |नीचे सनतसुजातोय अध्यात्मशास्त्र का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सनतसुजातोय अध्यात्मशास्त्र पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

Name of the Book is : Sanatsujatoy Adhyaytmshstra | This Book is written by Shankaracharya | To Read and Download More Books written by Shankaracharya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 44 MB | This Book has 590 Pages | The Download link of the book "Sanatsujatoy Adhyaytmshstra" is given above, you can downlaod Sanatsujatoy Adhyaytmshstra from the above link for free | Sanatsujatoy Adhyaytmshstra is posted under following categories dharm, hindu |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 44 MB
कुल पृष्ठ : 590

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लौः १ ]
प्रथमोऽध्यायः ।। समायुक्त हैतादि अईतरूपे जगत् अम्बिके पूर्णब्रह्म स्वरूपे । सुसल्यामलाये कुश कादिकाँसेबचावो मुझे कालिके अम्ब रुपै ॥४॥ महर्षि कहीशान्त गम्भीरवाणीमहाध्यानविद्या सुनत् जीबखानी। करू कालिकानामटोका उमौकाइमारी यही अञ्चलको लो भवानी ५ !
सूचना । कुरुक्षेत्र का युद्ध का होना अनिवार्य हो गया था। और शुल जोन सभाको शोकभी अवश्यम्भावी था। धृतराष्ट्र के भी भारी शोक हुआ। किन्तु ज्ञान के बिना शोकका दमन नहीं हो सकता। इसके लिए महाराज धृतराष्ट्रने विद्र जी से अनोपदेश लाभ करने को अभिलाषा प्रकट की। विदुर जी उनको उपदेशका आरम्भ करके सोचने लगे कि राजा शीघही अपने आत्मीयस्वजनादि लोगोके शोक में डूब जायेंगे। ज्ञान के अतिरिक्त इस प्रकारके दारुण शोक को निवारण करने के लिए और दूसरी कोई उपाय न देख उन्होंने प्रसंगवस कहा। महाराज । “मृत्यु कोई चीज नहीं, वहतो कैथल मोइका फल मात्र है। यह सुनकर राजा अत्यन्त आश्चर्यित हुए और बोले मृत्यु नहीं है, यह कैसी बात कहते हो ! तुम इसको मुझे विशद पसे समझा कर कहो।” राजाकी इस साझाको सुनकर विदुरजी बोले-इसे मैने आचार्य सनत्कुमारसे भुनाथा, किन्तु इसका ज्ञाता होकर भी इितर ( ब्राह्मण नहीं ) होने के कारण उसका वा नही हो सकता। आपको यदि इस विषयको जाननकी

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