सौंदर्य लहरी : विष्णुतीर्थ महाराज हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Saundarya Lahri : Vishnutirth Maharaj Hindi Book Free PDF Download

सौंदर्य लहरी : विष्णुतीर्थ महाराज | Saundarya Lahri : Vishnutirth Maharaj

सौंदर्य लहरी : विष्णुतीर्थ महाराज | Saundarya Lahri : Vishnutirth Maharaj

सौंदर्य लहरी : विष्णुतीर्थ महाराज | Saundarya Lahri : Vishnutirth Maharaj के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : सौंदर्य लहरी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shankaracharya | Shankaracharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 15.6 MB है | पुस्तक में कुल 411 पृष्ठ हैं |नीचे सौंदर्य लहरी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सौंदर्य लहरी पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

Name of the Book is : Saundarya Lahri | This Book is written by Shankaracharya | To Read and Download More Books written by Shankaracharya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 15.6 MB | This Book has 411 Pages | The Download link of the book "Saundarya Lahri " is given above, you can downlaod Saundarya Lahri from the above link for free | Saundarya Lahri is posted under following categories dharm, hindu |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 15.6 MB
कुल पृष्ठ : 411

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विद्याधिराज था । शिवगुरुजी को संतान न होने के कारण उन्होंने शिवजी की आराधना की, जिस के फल स्वरूप भगवत्पाद का जन्म हुअः । बाल शकर का उपनयन संस्कार ५ वें वर्ष में हुआ और असाधारण विशद वुद्धि होने से ८ वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने वेदाध्ययन एवं १२ वें वर्ष में सब शास्त्राभ्यास समाप्त कर लिया, और उसी समय उनके पिता के भौतिक देह का परित्याग करदेने पर तत्पश्चात् ही ब्रह्मचर्य अवस्था में ही तीव्र वैराग्य उदय होने पर श्री श्रीगोविन्द पादाचार्य से ॐ कारेश्वर क्षेत्र में नर्मदा तटपर संन्यास दीक्षा ली । और १६ वर्ष की अवस्था में काशी जाकर प्रस्थान त्रयी पर भाप्य लिखे । तदन्तर सनातन वैदिक धर्म के पुनसँस्थापन का अलौकिक कार्य किया; और तत्कालीन प्रचलित अवैदिक धर्म संप्रदायों को निरस्त किया। अद्वैत वेदान्त के सिद्धांत की विश्व में सुदृढ नींव कायम करने का एकांत श्रेय श्रीमच्छंकर भगवत्पाद को ही है। इतना सब कुछ आलौकिक कार्य ३२ वर्ष के अल्प समय में संपादित करके सन ८२० ई. में अपना प्रातः स्मरणीय नाम सदा के लिये छोडगये।
भगवत्पाद के घराने में परंपरागत सांबशिव उपासना चली आती थी। उनके श्रींगेरी आदि मठों में शिव व शार्दादि की शक्ति उपासना अद्यापि प्रचलित है शिव से निर्गुण परमतत्व प्राप्ति का ज्ञान मार्ग और शक्ति से शुद्धविद्या की उपासना समझना चाहिये। कांची मठ में श्रीचक्र की तांत्रिक उपासना समयाचार पद्धति के अनुसार आज भी होती है, जहां भगवत्पाद का विद्यार्थी कालीन आचार्य कुल था । सौन्दर्यलहरी के ११ वे श्लोक में श्रीचक्र का

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