अजूबा भारत : डॉ. महेंद्र भानावत हिंदी पुस्तक मुफ्त डाउनलोड | Ajooba Bharat : Dr. Mahendra Bhanavat Hindi Book Free Download

अजूबा भारत : डॉ. महेंद्र भानावत हिंदी पुस्तक मुफ्त डाउनलोड | Ajooba Bharat : Dr. Mahendra Bhanavat Hindi Book Free Download

अजूबा भारत : डॉ. महेंद्र भानावत हिंदी पुस्तक मुफ्त डाउनलोड | Ajooba Bharat : Dr. Mahendra Bhanavat Hindi Book Free Download के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अजूबा भारत है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Mahendra bhanavat | Mahendra bhanavat की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 8.21 MB है | पुस्तक में कुल 195 पृष्ठ हैं |नीचे अजूबा भारत का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अजूबा भारत पुस्तक की श्रेणियां हैं : Uncategorized, india

Name of the Book is : Ajooba Bharat | This Book is written by Mahendra bhanavat | To Read and Download More Books written by Mahendra bhanavat in Hindi, Please Click : | The size of this book is 8.21 MB | This Book has 195 Pages | The Download link of the book "Ajooba Bharat" is given above, you can downlaod Ajooba Bharat from the above link for free | Ajooba Bharat is posted under following categories Uncategorized, india |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 8.21 MB
कुल पृष्ठ : 195

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पूरे विश्व में भारत सबसे अजूबा अनोखा अद्भुत अनूठा तथा अलौकिक देश है । यहां की धरती आसमान तथा उसमें विचरण करने वाले प्राणियों का ही वैचिन्य चकित नहीं करता अपितु जो अदृश्य लोक है बह उससे भी कही अधिक चमत्कारी और चकाचौध देने वाला है । विज्ञान चाहे कितनी ही उथल पुथल मचा दे तब भी जो रहस्यमय है वह अजाना ही रहेगा । ऐसी रहस्यमय परतों को जानना उन्हें खोज निकालना और उन पर विवेचन करना बड़ा मुश्किल है । मनुष्य स्वयं की यह बिसात भी नहीं कि वह इसके लिए समर्थ हो सके | सामर्थ्य जुटाने के लिए उसे उन देव-शक्तियों की शरण में जाना पड़ेगा जिमकी यदि कृपा हो गई तो कुछ पा लिया । स्वाभाविक भी है देवलोक की समृद्धि मनुष्य लोक की कैसे हो सकती है । मनुष्य के लिए उसका अपना लोक ही बहुत है । वह उसी को ठीक से देख -समझ नही पा रहा है । अम्य जितने भी जो लोक हैं उन तक मानव की पहुँच सभव भी नहीं है | सभी लोक के प्राणी अपनी-अपनी सीमाओ और मर्यादाओ में जी रहे है । जिसने भी इनका उछुघन किया उसे वह बड़ा भारी पडा है । लोकजीवन की शक्ति और सामर्थ्य अकूत और अलभ्य है । उसे जितना अधिक खगालेगे उतने ही अजूबेपन के टीम्बे और टीले बढते मिलेंगे । अजूबेपन की जानकारी सबको ही सम्मोहित करती है और उतना ही विस्मय भी देती है । परियों देव गंधर्वो और भूत प्रेतो के किस्से जितमा रोमांच देते हैं उससे कहीं अधिक खडहरो के वैभव और खजानों के किस्से हमें आह्वादित करते हैं । इस पुस्तक में दो तरह के आलेख संग्रहीत हैं । एक बे जो लोकजीवन के अध्ययन और अनुभव से निखारे गये है और दूसरे वे जो लोक शक्ति से परे देव शक्ति के सरक्षण सबल और संवर्धन के प्रतिफल है । यह देव शक्ति भी लोक की ही सवेदनाओं और सरोंकारों से रूबरू होती हुई हमारे समक्ष मुखातिब होती हैं. लोक कीं अनगढ आस्था अदटूट विश्वास और अचूक समर्पण से यह देव शक्ति की रक्षा

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