सच्चा रास्ता : मौलाना बहिदुद्दीन खान | Sachcha Rasta : Maulana Bahiduddin Khan

सच्चा रास्ता : मौलाना बहिदुद्दीन खान | Sachcha Rasta : Maulana Bahiduddin Khan

सच्चा रास्ता : मौलाना बहिदुद्दीन खान | Sachcha Rasta : Maulana Bahiduddin Khan के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : सच्चा रास्ता है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Maulana Bahiduddin Khan | Maulana Bahiduddin Khan की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 700 KB है | पुस्तक में कुल 32 पृष्ठ हैं |नीचे सच्चा रास्ता का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सच्चा रास्ता पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, islam

Name of the Book is : Sachcha Rasta | This Book is written by Maulana Bahiduddin Khan | To Read and Download More Books written by Maulana Bahiduddin Khan in Hindi, Please Click : | The size of this book is 700 KB | This Book has 32 Pages | The Download link of the book "Sachcha Rasta" is given above, you can downlaod Sachcha Rasta from the above link for free | Sachcha Rasta is posted under following categories dharm, islam |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 700 KB
कुल पृष्ठ : 32

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मानव की योज मानव एक पूर्ण संसार करता है, परन्तु वह अपूर्ण संसार में हने के लिए विवश है। हमारी प्रस-नये अस्थायी हैं। हमारी प्रत्येक सफलता अपने साथ असला या परिणाम लिये हुए है। हम अपनी अदाओं को प्रतः वेल ये पूरी तरह से देख भी नहीं पाते कि संस्था उससे घेर लेत है। हमारे जीवन सी वृक्ष रयाली
और बसन्त के कुछ वर्ष भी नहीं व्यतीत होने पते कि दुर्घटना, विपलिया, खापस्था तथा मृत्यु उसे इस प्रकार समाप्त कर देती है, जैसे कि उसका ओई अस्तित्व ही न था। | पुष्प कितने सुन्दर होते हैं, परन्तु पुष्प मात्र इसलिये खिलते है कि वह मुरझ जायें। सूर्य की किरणें कितनी आनन्द दायर हैं, परन्तु सूर्य के प्रकाश के लिये यह वाथ्यता है कि वह कुछ देर के लिये धमके और इसके बाद रात्रि की कालिमा इसे ढक ले। एक जीवित व्यक्ति का अस्तित्व कितना वमत्यारी है, किन्तु येई भी व्यक्ति अपने आप को मृत्यु एवं दुर्घटना से नीं बच सकता। वर्तमान संसार के प्रत्येक वस्तु की यही स्थित है। यह संसार कल्पना को संधि तक मो एवं अर्दपूर्ण है, परन्तु में से प्रत्येक विशेष नश्वर है। से कुछ भी देषरांत है, जो किसी प्रकार उससे अलग नहीं होते ईश्वर स्वयं पूर्ण हो, वह एक ऐसी सृष्टि से सन्तुष्ट नहीं हो सकता, जो अपूर्ण हो। पूर्ण का अपूर्ण पर सन्तुष्ट हो

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