ईर्ष्या की आग : आचार्य श्री नानेश | Irshya Ki Aag : Acharya Shri Nanesh

ईर्ष्या की आग : आचार्य श्री नानेश | Irshya Ki Aag : Acharya Shri Nanesh

ईर्ष्या की आग : आचार्य श्री नानेश | Irshya Ki Aag : Acharya Shri Nanesh के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : ईर्ष्या की आग है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Acharya Nanesh | Acharya Nanesh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 2.3 MB है | पुस्तक में कुल 94 पृष्ठ हैं |नीचे ईर्ष्या की आग का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | ईर्ष्या की आग पुस्तक की श्रेणियां हैं : Knowledge, suggested

Name of the Book is : Irshya Ki Aag | This Book is written by Acharya Nanesh | To Read and Download More Books written by Acharya Nanesh in Hindi, Please Click : | The size of this book is 2.3 MB | This Book has 94 Pages | The Download link of the book "Irshya Ki Aag" is given above, you can downlaod Irshya Ki Aag from the above link for free | Irshya Ki Aag is posted under following categories Knowledge, suggested |

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पुस्तक का साइज : 2.3 MB
कुल पृष्ठ : 94

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प्रकाशकीय
A साधुमार्ग की इस पवित्र-पावन धारा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए बड़े-बड़े आचार्यों ने अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । भगवान् महावीर के बाद अनेक बार प्रागमिक धरातल पर क्राति का प्रसंग आया है जिसका उद्देश्य श्रमण संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने का रहा। ऐसी क्राति घारा मे, क्रियोद्धारक, महान् प्राचार्य श्री हुकमी चन्दजी म सा. का नाम विशेष रूप से उभर कर सामने आता है । तत्कालीन युग मे जहा शिथिलाचार व्यापक तौर पर फैलता जा रहा था । शुद्ध साधुत्व की स्थिति विरल ही परिलक्षित होती थी । बडे-२ साधु मठो की तरह उपाश्रयो में अपना स्थान जमाये हुए थे । चेलो के पीछे साधुता बिखरती जा रही थी । ऐसे युग में प्राचार्य श्री हुक्मीचन्द जी म. सा ने उपदेशों से ही नहीं अपितु अपने विशुद्ध एव उत्कृष्ट सयममय जीवन से जन मानस को प्रभावित किया। प्राचार्य प्रवर केवल तपस्वी अथवा सयमी ही नही थे वरन् श्रमण-सस्कृति के गहरे आगमिक अध्येता श्रुतघर थे । आपके जीवन का ही प्रभाव था कि हजारो स्त्री-पुरुष आपके चरण सान्निध्य को पाने के लिए लालायित रहते थे। ‘तिन्नाण तारयाण के आदर्श आचार्य प्रवर ने योग्य मुमुक्षुमो को दीक्षित किया और जो देशव्रती बनना चाहते थे, उन्हे देशव्रती बनाया । इस प्रकार सञ्ज रूप से ही

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