वाह विज्ञान : अरविन्द गुप्ता हिंदी पुस्तक | Aha Activities : Arvind Gupta Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : वाह विज्ञान है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Arvind Gupta | Arvind Gupta की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Arvind Gupta | इस पुस्तक का कुल साइज 8.02 MB है | पुस्तक में कुल 126 पृष्ठ हैं |नीचे वाह विज्ञान का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | वाह विज्ञान पुस्तक की श्रेणियां हैं : children, education, Knowledge, science
Name of the Book is : Aha Activities | This Book is written by Arvind Gupta | To Read and Download More Books written by Arvind Gupta in Hindi, Please Click : Arvind Gupta | The size of this book is 8.02 MB | This Book has 126 Pages | The Download link of the book "Aha Activities" is given above, you can downlaod Aha Activities from the above link for free | Aha Activities is posted under following categories children, education, Knowledge, science |
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शाशवत विजञान की मॉडल कर ही थ को कप नायर आर है थे दा सम मे जाता है अकसर हाथ के काम में बचचे खिलौने कयों तोड़ते हैं? खिलौने तोड़कर उनके पेट में कया है वे यह जानने को उतसुक होते हैं। जयादा दकष होते हैं। मैं मुशकिल से पाठयकरम खतम कर पाती हूं। परयोगों के लिए समय ही कहां है? कबाड-कचरा भरा है। उनहीं से कुछ खिलौने बनाओ। विजञान की किटस खरीदने के लिए पैसे कहां हैं? अगर ककषा के सभी साठ बचचे परयोग करेंगे तो मैं पागल हो जाऊंगा गंभीर शिकषकों ने हमेशा ही इस परकार के सवाल उठाए हैं। यह परशन वाजिब हैं। पैसों और साधनों के अभाव में भारत में करियाओं दवारा विजञान कैसे संभव होगा? दुनिया भर का यही अनुभव है - रेडीमेड विजञान की किटस कभी उपयोग में नहीं लायीं जातीं हैं। उनपर धूल जमती है। जो मॉडल बचचे और शिकषक खुद मिलकर बनाते हैं वही अधिक उपयोगी होते हैं। ससते साज सामान से विजञान के सरल मॉडल बनाने की अपार संभावनाएं हैं। दवितीय महायुदध में तमाम देश तबाह हुए। आरथिक तंगी में कई देशों ने सकूल इमारतों के निरमाण का काम तो पूरा किया। परनतु उसके बाद उनके पास विजञान की परयोगशालाएं रचने के लिए धन नहीं बचा कयोंकि परयोगशालाएं अकसर मंहगी होती हैं। 1950 के दशक में एक बरिटिश सकूल शिकषक जे पी सटीफिनसन ने एक पुसतक लिखी जिसमें उसने साधारण ससते सामान से विजञान के सरल मॉडल बनाने की संभावनाएं दिखायीं। इस पुसतक का नाम था सजेशंस फॉर साइंस टीचरस इन डिवासटेटिड कटटीज। इस पुसतक का पूरी दुनिया में डंका फैला। मंहगे और फैंसी विजञान के उपकरणों और गरीब बचचों की जिंदगी में एक गहरा अलगाव होता है। बाद में यूनेसको ने इस पुसतक की कलपना और दृषटि को आगे बढ़ाया और उसे यूनेसको सोरसबुक फॉर साइंस टीचिंग के नाम से परकाशित किया। इसे आज भी करियातमक विजञान की सरवशरेषठ पुसतक समझा जाता है। 1963 में इस पुसतक का हिंदी और मराठी के साथ कुछ परांतीय भाषाओं में भी अनुवाद हुआ। यह दुरभागय है कि परांतीय भाषाओं के संसकरण दशकों से अनउपलबध हैं। परेरित शिकषक जड़ नियमों और कानूनों से हताश नहीं होते हैं। वे पाठयकरमों के बोझ के तले दबते नहीं हैं। इसकी बजाए वे बचचों के साथ अपना एक विशेष सथान बनाते हैं। उनहें बचचों के असीमित जोश और संभावनाओं पर विशवास होता है। बलैकबोरड और रटने की विधि की सीमाएं वे जानते हैं। वे विजञान करियाओं के जादू से अवगत होते हैं। बचचों को उनमें बेहद आनंद आता है। विजञान गतिविधियों के आयोजन में वे बचचों का सहयोग लेते हैं। आसपास के फेंके हुए कबाड़ से वे बचचों को विजञान के मॉडल और रोचक खिलौने बनाने के लिए परेरित करते हैं। विजञान की गतिविधियों पर यह मेरी बारहवीं पुसतक है। अब मेरी सभी पुरानी पुसतकें डिजिटल संसकरणों में उपलबध हैं। उनको आसानी से मेरी वेबसाइट से डाउनलोड किया जा सकता है। रंगीन फोटो की किताब बहुत मंहगी होगी इसलिए मेरी किसी पुसतक में फोटो नहीं हैं। परंतु अब मेरी वेबसाइट पर विजञान मॉडल बनाने के हजारों रंगीन फोटोगराफस हैं। उनके साथ हजारों विडियो और रोचक पुसतकों को मेरी वेबसाइट से मुफत में डाउनलोड किया जा सकता है। (10000 काशाए0 पाए 05.00) | |