मिजबान – बुन्देलखंडी लोक कथाएं : एकलव्य प्रकाशन | Mizbaan – Bundelkhand Ki Lok Kathayen : Eklavya Prakashan

मिजबान – बुन्देलखंडी लोक कथाएं : एकलव्य प्रकाशन | Mizbaan – Bundelkhand Ki Lok Kathayen : Eklavya Prakashan

मिजबान – बुन्देलखंडी लोक कथाएं : एकलव्य प्रकाशन | Mizbaan – Bundelkhand Ki Lok Kathayen : Eklavya Prakashan के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : मिजबान - बुन्देलखंडी लोक कथाएं है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Arvind Gupta | Arvind Gupta की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 1.5M है | पुस्तक में कुल 42 पृष्ठ हैं |नीचे मिजबान - बुन्देलखंडी लोक कथाएं का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मिजबान - बुन्देलखंडी लोक कथाएं पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Mizbaan - Bundelkhand Ki Lok Kathayen | This Book is written by Arvind Gupta | To Read and Download More Books written by Arvind Gupta in Hindi, Please Click : | The size of this book is 1.5M | This Book has 42 Pages | The Download link of the book "Mizbaan - Bundelkhand Ki Lok Kathayen" is given above, you can downlaod Mizbaan - Bundelkhand Ki Lok Kathayen from the above link for free | Mizbaan - Bundelkhand Ki Lok Kathayen is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 1.5M
कुल पृष्ठ : 42

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तब जाके बा ठीक भई थी।" बूढ़े दादा बड़े ध्यान से तुन रए थे। बिनने कई, "बहु की जान बच जाए जोई करो।" बिचारी माताटान चुपचाप सब तमासो देख रई थी।
अब जल्दी से जाई हे बुलबाओ और माताराम को मुण्डन करबाओ। बालों हे पुटरिया में रखके बहु के ऊपर से पाँच बार उतारके नदिया में सिरा दए। बहुतो नाटक करई रई थी बातुरतई बिलकुल अच्छी हो गई।
रात के समय मोड़ा सहर से दुकान को सामान लेके लोटो, तो बाहे सब बात पता चली। बो समझ गओ भोत दिक्कत हो गई है। नगर मोड़ा बड़ो समझदार थी, बो कछु नई बोलो। बाने सोची जब बखत आहे तब देख हैं। जाको बदला जरूर लेहूँ।
जब मोड़ा दुकान पे जाए तो बहुचकिया लेके बेठे और कछु भी पीसबे रख ले। चकिया चलात जाए ओर गात जाए, "मेंने ऐंसी टेक निभाई मेरी सास की मूढ़ मुड़ाई, मेंने ऐंसी टेक निभाई.।" जो गीत लुनके माताराम बड़ी दुखी होए, भोत परेसान रहे। फिर भी जा बात माताराम ने अपने जोड़ा है जई बताई।
एक दिन का भओ की, मोड़ा दुकान बन्द करके दुफेर मेई घर आ गओ। जैसई घर के भीतर घुसी बाने देखो, बहु चकिया चला दई हे ओर बोई गीत गा रई हे, "मेंने ऐंसी टेक निभाई मेरी सास की मूढ़ गुड़ाई, मेंने ऐंसी टेक निभाई.।" मोड़ा हे भोत गुस्सा आई। पर बाने सोची में ईंट को जबाब पथ्थर से देहूँ।
अब मोड़ा सीधी अपनी पुसरार पोंहचो। पहचतेई से जोर-जोर से रोन लगी। बाके सुसर-सास, सारे सब घबरा गए की लालाजी हे का हो गओ? का घर में कछु बुरो हो गओं ? सुसर ने पूछी, "लालाजी बताओ तो का बात हे, का तकलीफ है?" लालाजी रोत-रोत बोले, "तुमरी मोड़ी की तबियत कछु दिना से भीतई खराब है। हमने बाकी भोत इलाज कराओं मनो बाहे कछु आराम नई पड़ रओ। एक गुनिया ने बताओ हे बाहे भीतई खतरनाक प्रेतबाधा लगी हे। अगर बाबाधा दूर नई भई तो तुमरी मोड़ी खतम हो जाहे। बा खतम भई तो हमरी माताराम खतम हो जाहें ओर बिनके बाद में खतम हो जेहूँ। बाके बाद तुमरे घर भी ऍसई हुए। एक-एक करके सब मर जेहें। सब सत्यानास हो जेहे।"
सबरे बड़े परेसान अब का करें? सुसर ने पूछी, "लालाजी गुनिया ने प्रेत बाधा दूर करबे काजे कछु उपाओ बताओ हे की नई?" लालाजी बोले, "जा बाधा ने गुनिया से कई हे का जोड़ी हे तबई छोड़हूँ, जब जाके सबरे मायके बारे मोड़ा-मोड़ी से लेके डुकरा-डुकरिया तक, अपनी मुण्डन करबाके सबरे बाल एक पुटरिया में रखके

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