बाबा आमटे : तारा धर्माधिकारी हिंदी पुस्तक | baba Amte : Tara Dharmadhikari Hindi Book

बाबा आमटे : तारा धर्माधिकारी | baba Amte : Tara Dharmadhikari

बाबा आमटे : तारा धर्माधिकारी | baba Amte : Tara Dharmadhikari

बाबा आमटे : तारा धर्माधिकारी | baba Amte : Tara Dharmadhikari के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : बाबा आमटे है | इस पुस्तक के लेखक हैं : tara dharmadhikari | tara dharmadhikari की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 3.6 MB है | पुस्तक में कुल 82 पृष्ठ हैं |नीचे बाबा आमटे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | बाबा आमटे पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography

Name of the Book is : Baba Amte | This Book is written by tara dharmadhikari | To Read and Download More Books written by tara dharmadhikari in Hindi, Please Click : | The size of this book is 3.6 MB | This Book has 82 Pages | The Download link of the book "Baba Amte" is given above, you can downlaod Baba Amte from the above link for free | Baba Amte is posted under following categories Biography |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 3.6 MB
कुल पृष्ठ : 82

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गठन
बाबा आमटे का जन्म 26 दिसंबर 1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में हिंगणघाट गांव में हुआ था। उनका परिवार एक सनातनी ब्राह्मण परिवार था। उनके पिता देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में लेखापाल (एकांउटेंट) थे। वरोड़ा से पांच-छह मील दूर गोरजे गांव में उनकी जमींदारी थी। बाबा का बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता। सोने के पालने में चांदी के चम्मच से उन्हें खाना खिलाया जाता । रेशमी कुर्ता, सिर पर जरी की टोपी तथा पांवों में बूट-यही उनकी वेशभूषा रहती। उनकी चार बहनें और एक भाई था। उनका पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे है । | बाबा अपने पिता से हमेशा डरे-सहमे से रहते, उनसे बात करने से कतराते थे। लेकिन अपनी मां से उनकी गाढ़ी छनती थी। उनकी माताजी एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला थीं। उनका व्यक्तित्व अद्भुत था। मां भिन्न-भिन्न चित्र बनातीं, उन्हें मिठाई-टाफी के लिए पैसे देतीं तथा बड़ी चतुराई के साथ उनकी जिज्ञासा का समाधान भी करती थीं। बचपन में मां ने आमटे को खेलने के लिए एक लुढ़कने वाला गुहा दिया था जो बार-बार गिराये जाने पर भी उठ कर बैठ जाता था। मां कहा करती थीं, "देख बेटे, जिंदगी में इसी तरह गिरते-पड़ते रहने के, मात खाने के, धराशायी होने के प्रसंग आते ही रहेंगे, पर डरना नहीं, हथियार नहीं डालना। हार कर

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