अध्यात्म कमल मार्तण्ड : जुगल किशोर मुख़्तार | Adhyatam Kamal Martand : Jugal Kishore Mukhtar

अध्यात्म कमल मार्तण्ड : जुगल किशोर मुख़्तार | Adhyatam Kamal Martand : Jugal Kishore Mukhtar

अध्यात्म कमल मार्तण्ड : जुगल किशोर मुख़्तार | Adhyatam Kamal Martand : Jugal Kishore Mukhtar के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अध्यात्म कमल मार्तण्ड है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Jugal Kishore Mukhtar | Jugal Kishore Mukhtar की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 4.8MB है | पुस्तक में कुल 202 पृष्ठ हैं |नीचे अध्यात्म कमल मार्तण्ड का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अध्यात्म कमल मार्तण्ड पुस्तक की श्रेणियां हैं : jain

Name of the Book is : Adhyatam Kamal Martand | This Book is written by Jugal Kishore Mukhtar | To Read and Download More Books written by Jugal Kishore Mukhtar in Hindi, Please Click : | The size of this book is 4.8MB | This Book has 202 Pages | The Download link of the book "Adhyatam Kamal Martand" is given above, you can downlaod Adhyatam Kamal Martand from the above link for free | Adhyatam Kamal Martand is posted under following categories jain |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 4.8MB
कुल पृष्ठ : 202

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नयों द्वारा विभजनीय है-बिभागपूर्वक जानने योग्य है, और विद्वानों द्वारा रोचनीय है—प्राप्त करने के योग्य हैं। इसके सर्वज्ञदेबने दो भेद कहे हैं-( १ ) विमल आत्मा और (३)समल आत्मा। अथवा मुकजीव और संसारी जीव ।।
भावार्थ-द्रव्योंमें दो तरहकी शक्तियाँ विद्यमान हैं-(१) भावबती और (२) क्रियावती । जीव और पुद्गल द्रव्यमें तो भाववती
और क्रियावती दोनों शक्तियों वर्णित की गई हैं तथा शेष चार इस्य ( धर्म, अधर्म, आकाश श्री काल) में केवल भावगती शक्ति कही गई है। इन दोनों शक्तियों को लेकर द्रव्यों में परिणमन होता है। भाववती शक्ति के निमित्तसे तो शुद्ध ही परिणमन होता है और क्रियायती शक्तिसे अशुद्ध परिणमन होता है। अतः भाववती शक्तिके निमित्तसे होनेवाले परिणमनको शुद्धपर्याय कहते हैं और कियावती शक्ति के निभिससे होनेवाले परिणामन अशुद्धपर्याय कही जाती हैं। यहाँ फलितार्थरूपमें यह कह देना अप्रासङ्गिक न होगा कि जौ और पुट्टलमें उभय शक्तियोंके रहनेसे शुद्ध और अशुद्ध दोनों प्रकार की पर्यायें होती हैं। तथा शेष चार द्रब्यमि केवल भाववती शक्तिके रहने से शुद्ध ही पर्याय होती हैं । जीवद्रव्यमें जो स्यप्रदेशों में परिणमन होता है वह उसकी शुद्ध पर्याय है और कर्म के संयोगसे अवस्थासे अबस्थान्तरम्प जो परिणमन होता है यह अशुद्ध पर्याय है। ग्रह जीवद्रव्य भिन्न भिन्न व्यवहारादिनयों द्वारा जानने के योग्य है। इसके दो भेद हैं(१) गुरुजीब और (२) संमारी जीव । फर्मरहित जीवों को मुक्त जीव अथवा विमल-आत्मा कहते हैं और कमसहित जीवको संसारीजीव अथवा सम-आत्मा कहते हैं। आर्गके दो पद्योंमें इन दोनका स्वरूप अन्धकार स्वयं कहते हैं।

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