आंतरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान | Aantrik Kayakalp Ka Saral Kintu Sunischit Vidhaan

आंतरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान | Aantrik Kayakalp Ka Saral Kintu Sunischit Vidhaan

आंतरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान | Aantrik Kayakalp Ka Saral Kintu Sunischit Vidhaan के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : आंतरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Pt. Shreeram Sharma Acharya | Pt. Shreeram Sharma Acharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 5.5 MB है | पुस्तक में कुल 173 पृष्ठ हैं |नीचे आंतरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | आंतरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, Knowledge, science

Name of the Book is : Aantrik Kayakalp Ka Saral Kintu Sunischit Vidhaan | This Book is written by Pt. Shreeram Sharma Acharya | To Read and Download More Books written by Pt. Shreeram Sharma Acharya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 5.5 MB | This Book has 173 Pages | The Download link of the book "Aantrik Kayakalp Ka Saral Kintu Sunischit Vidhaan" is given above, you can downlaod Aantrik Kayakalp Ka Saral Kintu Sunischit Vidhaan from the above link for free | Aantrik Kayakalp Ka Saral Kintu Sunischit Vidhaan is posted under following categories history, Knowledge, science |

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पुस्तक का साइज : 5.5 MB
कुल पृष्ठ : 173

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भौतिक क्षेत्र की सफलताएँ योग्यता, पुरुषार्थ एवं साधनों पर निर्भर है। आमतौर से परिस्थितियाँ तदनुरूप ही बनती है । अपवाद तो कभी-कभी ही होते है। बिना योग्यता, बिना पुरुषार्थ एवं बिना साफ्नों । के भी किसी को कासँ क्रा गड़ा खजाना हाथ लग जाय, छप्पर फाड़कर नरसी के आँगन में हुण्डी बरसने लगे तो इसे कोई नियम नही, चमत्कार। ही कहा जायगा । वैसी आशा लगाकर बैठे रहने वाले, सफलताओं का मूल्य चुकाने की आवश्यकता न समझने वाले व्यवहार जगत में सनकी माने और उपहासास्पद समझे जाते हैं । नियति-विधान का उल्लंघन करके, उचित मूल्य पर उचित वस्तुएँ खरीदने की परम्परा को झुठलाने वाली पगडण्डियाँ ढूँढने वाले पाने के स्थान पर खोते ही खोते रहते है । लम्बा मार्ग चलकर लक्ष्य तक पहुँचने की तैयारी करना ही बुद्धिमत्ता है, यथार्थवादिता इसी में है। बिना पंखों के कंल्पना लोक में उड़ान उड़ने वाले बहिरंग जीवन में व्यवहार छेत्र में कदाचित् कभी कोई सफल हुए हों ।

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