आधुनिक हिंदी काव्य में निराशावाद हिन्दी पुस्तक | Adhunik Hindi Kavya Mein Nirashawad Hindi Book

आधुनिक हिंदी काव्य में निराशावाद हिन्दी पुस्तक | Adhunik Hindi Kavya Mein Nirashawad Hindi Book

आधुनिक हिंदी काव्य में निराशावाद हिन्दी पुस्तक | Adhunik Hindi Kavya Mein Nirashawad Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 15.42 MB है | पुस्तक में कुल 463 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, history

Name of the Book is : | This Book is written by | To Read and Download More Books written by in Hindi, Please Click : | The size of this book is 15.42 MB | This Book has 463 Pages | The Download link of the book "" is given above, you can downlaod from the above link for free | is posted under following categories education, history |


पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 15.42 MB
कुल पृष्ठ : 463

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

उपोद्रघात हिन्दी-साहित्य-विपयक सर्वप्रथम उपाधि-सापेक्ष प्रवन्थ थियाँ- लॉजी आव्‌ तुलसीदास है जो १६१५ इं० में ही प्रकाशित हुआ था। वक्त प्रंथ पर जे० एन० कारपेन्टर महोदय को लन्दन विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर आवू डिविनिटी की उपाधि प्रदान की गई थी । उसके वाद के वीस चर्पों में अनेक विश्वविद्यालयों में हिन्दी-अलुसंघान का कुछ न कुछ क्रम चलता रहा । उसकी श्ाशातीत प्रगति गत सत्रह-अठारद्द चर्षो में हुई है । इस अल्पकाल में हिन्दी-साहित्य के विभिन्न अंगों पर योग्य श्चुशीलकों हारा व्यापक अनुसन्धान कायं सम्पन्न हुआ । अब तक कुल मिलाकर लगमग सौ अनुसन्थाताओं को हिन्दी में ढी० लिट्9 पी-एच० ढी० या डी० फिलू० की उपाधि मिल चुकी है । इन उपाधियों के लिए स्वीकृत प्रवन्धों में से लगभग पॉच दर्जन प्रकाशित भी हो चुके हैं । झव वह समय शा गया है कि हिन्दी-साहित्य के प्रत्येक युग की विशिष्ट प्रदूत्तियों का अलग-अलग गवेपणात्सक अध्ययन प्रस्तुत किया जाय । आधुन्तिक हिन्दी-कविता विशेषकर छाधावादी कोल से निराशावादी भावनाओं की झमिव्यक्ति कदियो की विशिष्ट प्रवृत्ति का परिणाम है । श्री शस्थुनाथ पाण्डेय ने इस वांझनीय झनुशीलन की झपेक्षित पूति की है । वे बधाई के पात्र हैं | अनुसन्धान के तीन लक्ष्य हो सकते हें-शरज्ञात सामग्री का ज्ञापन ज्ञात किन्तु झविवेचित सामग्री का विवेचन अथवा व्याख्यात सामग्री की नवीन परीक्षा । कही एक ही दृष्टि झपनाई जा सकती है श्र कहीं दो या तीनों का समन्वय भी हो सकता है। थनुसन्धान शुद्ध हो या मिश्र इसका तत्वाभिनिवेशी और भूल्यवान्‌ दोना श्याव- श्यक है । प्रतिपाद्य चिपय के लिए उपयोगी समस्त वस्तु की विधिवत्तू छानवीन करके उसका न्याय-संगत विभाजन वर्गीकरण श्और विश्लेपण होना चाहिए । र

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.