अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार| Adhyatm Vidya Ka Pravesh Dwar

अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार| Adhyatm Vidya Ka Pravesh Dwar

अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार| Adhyatm Vidya Ka Pravesh Dwar

अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार| Adhyatm Vidya Ka Pravesh Dwar के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shri Ram Sharma Acharya | Shri Ram Sharma Acharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 1.8 MB है | पुस्तक में कुल 57 पृष्ठ हैं |नीचे अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, Knowledge

Name of the Book is : Adhyatm Vidya Ka Pravesh Dwar | This Book is written by Shri Ram Sharma Acharya | To Read and Download More Books written by Shri Ram Sharma Acharya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 1.8 MB | This Book has 57 Pages | The Download link of the book "Adhyatm Vidya Ka Pravesh Dwar" is given above, you can downlaod Adhyatm Vidya Ka Pravesh Dwar from the above link for free | Adhyatm Vidya Ka Pravesh Dwar is posted under following categories dharm, Knowledge |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 1.8 MB
कुल पृष्ठ : 57

यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

मनुष्य दैवी और भौतिक तत्त्वों से मिलकर बना है। इसमें मन भौतिक और आत्मा दैवीतत्त्व है। आत्मा के तीन गुण हैं-सत्, चित् और आनंद । वह सतोगुणी है, श्रेष्ठ शुभ, दिव्य भाग की ओर प्रवृत्ति वाला एवं सतत-हमेशा रहने वाला अविनाशी है। चित्- चैतन्य, जागृत, क्रियाशील, गतिवान है, किसी भी अवस्था में वह क्रिया रहित नहीं हो सकता। आनंद-प्रसन्नता, उल्लास, आशा तथा तृप्ति उसका गुण है। आनंद की दिशा में उसकी अभिरुचि सदा ही बनी रहती है। आनंद, अधिक आनंद, अति आनंद उपलब्ध करना उसके लिए वैसा ही प्रिय है जैसा मछली के लिए जल। मछली जल मग्न रहना चाहती है। आत्मा को आनंद मग्न रहना मुहाता है । सत्, चिन्, आनंद गुण वाली आत्मा हर एक के अंत:करण में अधिष्ठित है। मन और आत्मा में जैसे-जैसे निकटता होती जाती है वैसे-ही-वैसे मनुष्य अधिक सात्त्विक, अधिक क्रियाशील और अधिक आनंद मग्न रहने लगता है। योगीजन ब्रह्म प्राप्ति के लिए साधना करते हैं।

Share this page:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *