पृथ्वी गोल है | Prithvi Gol Hai

पृथ्वी गोल है : इसाक असिमोव | Prithvi Gol Hai : Isaac Asimov

पृथ्वी गोल है : इसाक असिमोव | Prithvi Gol Hai : Isaac Asimov के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : पृथ्वी गोल है है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Arvind Gupta, Isaac Asimov | Arvind Gupta, Isaac Asimov की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : , | इस पुस्तक का कुल साइज 100 KB है | पुस्तक में कुल 13 पृष्ठ हैं |नीचे पृथ्वी गोल है का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पृथ्वी गोल है पुस्तक की श्रेणियां हैं : Knowledge, science

Name of the Book is : Prithvi Gol Hai | This Book is written by Arvind Gupta, Isaac Asimov | To Read and Download More Books written by Arvind Gupta, Isaac Asimov in Hindi, Please Click : , | The size of this book is 100 KB | This Book has 13 Pages | The Download link of the book "Prithvi Gol Hai" is given above, you can downlaod Prithvi Gol Hai from the above link for free | Prithvi Gol Hai is posted under following categories Knowledge, science |


पुस्तक के लेखक : ,
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 100 KB
कुल पृष्ठ : 13

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

अगर पृथ्वी को चपटा मान भी लें तो फिर उसकी गहराई कितनी थी? अगर कोई पृथ्वी में एक गड्ढा खोदे तो वो कितनी गहराई तक खोद सकेगा? क्या इस गड्ढे का कोई अंत होगा, या नहीं? | क्या पृथ्वी एक चपटी रोटी थी? क्या वो एक-मील, मोटी थी? या दस-मील या फिर पचास-मील मोटी? अगर पृथ्वी किसी चीज की बनी एक चपटी रोटी थी, तो फिर वो गिरती क्यों नहीं थी? पृथ्वी टिकी क्यों रहती थी?
प्राचीन कालीन भारतीयों के अनुसार पृथ्वी बड़े विशालकाय हाथियों की पीठ पर टिकी थी। इसीलिए वो गिरती नहीं थी।
फिर सवाल यह उठता था कि यह हाथी किस पर खड़े थे? भारतीय चिंतकों के अनुसार ये हाथी एक विशाल कछुए पर खड़े थे।
और फिर वो कछुआ कहां खड़ा था? भारतीयों के अनुसार कछुआ एक बड़े महासागर में तैर रहा था। तो क्या महासागर बेहद गहरे थे? क्या उनकी गहराई एकदम नीचे तक जाती थी? इस प्रश्न का किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। यह बात स्पष्ट थी कि पृथ्वी को पूरी तरह चपटा और समतल मान लेने में तमाम दिक्कतें थीं।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.