बगलामुखी मन्त्र विधान | Baglamukhi Mantra Vidhan के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : बगलामुखी मन्त्र विधान है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shri Yogeshwaranand Ji | Shri Yogeshwaranand Ji की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Shri Yogeshwaranand Ji | इस पुस्तक का कुल साइज 3.9 MB है | पुस्तक में कुल 16 पृष्ठ हैं |नीचे बगलामुखी मन्त्र विधान का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | बगलामुखी मन्त्र विधान पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu
Name of the Book is : Baglamukhi Mantra Vidhan | This Book is written by Shri Yogeshwaranand Ji | To Read and Download More Books written by Shri Yogeshwaranand Ji in Hindi, Please Click : Shri Yogeshwaranand Ji | The size of this book is 3.9 MB | This Book has 16 Pages | The Download link of the book "Baglamukhi Mantra Vidhan" is given above, you can downlaod Baglamukhi Mantra Vidhan from the above link for free | Baglamukhi Mantra Vidhan is posted under following categories dharm, hindu |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
मंत्र जप से पूर्व प्रतिदिन न्यास करें। शापाद्धार आदि क्रियाएँ पुरूचरण के प्रथम दिन ही संपन्न कर लें। एक लाख जप करने से साधक का मंत्र सिद्ध हो जाता है। उसके बाद कुल जप का दशांश हवन, तद्दांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन अथवा अभिषेक और अभिषेक को दशांश-संख्या में योग्य ब्राह्मणों, गुरु आदि को भोजन, वस्त्रादि तथा दक्षिणा से संतुष्ट कर उनका आशवाद का दशांश जप कर लेने से भी पूर्णता मिल जाती है। यदि । एक लाख की संख्या में जप किया है तो हवन उसका दश हजार की संख्या में होगा। लेकिन कलियुग में चार
गुने का विधान है। इसलिए दश हजार के स्थान पर चालीस हजार की संख्या में जप करना चाहिए। | यदि ब्राह्मणों को भोजन कराने में सक्षम न हों तो केवल गुरुदेव को ही भोजन कराकर उनसे आशयाद प्राप्त करें। इससे भी अनुष्ठान पूर्ण माना जाता है। जहां तक हवन का प्रश्न है तो इस संबंध में यह ज्यादा उचित है कि यदि दशांश होम न कर सकें तो दशांश । अथवा उसका चार गुना जप करके छोटा सा होम कर देना चाहिए। क्योंकि आहुतियां 'वीर्थरुप' कहलाती हैं। जिस प्रकार संतांन-प्राप्ति में 'वीर्य' का स्थान है, उसी प्रकार सिद्धि प्राप्ति में होम का स्थान है। पुरचरण के उपरांत गुरु, ब्राह्मण, बड़े बुजुर्गों का आर्शीवाद बहुत आवश्यक है, जो साधक को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने में पुल का कार्य करता है।
॥ पुरश्चरण (जप) के फल। | ‘मेरू-तंत्र' के अनुसार पूजन-यजन का विधान इस प्रकार है
1 विनियोग व न्यास- सर्व प्रथम विनियोग करके मंत्र के न्यास आदि करें।
2 ध्यान- न्यास आदि के बाद भगवती का ध्यान करें। | ३ यंत्र-पूजन- ध्यान के बाद सोने, चांदी अथवा भोजपत्र पर कपूर, अरु, कस्तूरी, चंदन तथा रोती मिलाकर
उसकी स्याही से अनार को कलम के द्वारा यंत्रराज का निर्माण कर उसका पूजन करें। 4जप- यंत्र पूजन के उपरांत आरती आदि संपन करके यथा संख्यक जप करें। 5 होम- नियत संख्या में जप करने के उपरांत एक सुंदर कुण्ड़ का निर्माण करें। उसे तीन मेखलाओं से सजाकर,