भक्त-दिवाकर | Bhakta Diwakar

भक्त-दिवाकर | Bhakta Diwakar

भक्त-दिवाकर | Bhakta Diwakar के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : भक्त-दिवाकर है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Hanuman Prasad Poddar | Hanuman Prasad Poddar की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 24.3 MB है | पुस्तक में कुल 118 पृष्ठ हैं |नीचे भक्त-दिवाकर का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भक्त-दिवाकर पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm

Name of the Book is : Bhakta Diwakar | This Book is written by Hanuman Prasad Poddar | To Read and Download More Books written by Hanuman Prasad Poddar in Hindi, Please Click : | The size of this book is 24.3 MB | This Book has 118 Pages | The Download link of the book " Bhakta Diwakar" is given above, you can downlaod Bhakta Diwakar from the above link for free | Bhakta Diwakar is posted under following categories dharm |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 24.3 MB
कुल पृष्ठ : 118

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सोमश नामक एक सुशील ब्राह्मण थे। उनकी पत्नीका नाम सुमना था। सुव्रत उन्हींके सुपुत्र थे। भगवान की कृपासे ही ब्राह्मण दम्पतिको ऐसा भागवत पुत्र प्राप्त हुआ था। पुत्रके साथ ही ब्राह्मणका घर ऐश्वर्यसे पूर्ण हो गया था। सुव्रत पूर्व जन्म में धर्माङ्गद नामक भक्त राजकुमार थे । पिता के सुखके लिये उन्होंने अपना मस्तक दे दिया था । पूर्व जन्म के अभ्यासवश लड़कपन में ही वे भगवानका चिन्तन और ध्यान करने लगे थे। वे जब बालकों के साथ खेलते तब अपने साथी बालकों को भगवान्के ही ‘हरि, गोविन्द, मुकुन्द, माधव' आदि नामों से पुकारते। उन्होंने अपने सभी मित्रों के नाम भगवान्के नामानुसार ही रख लिये थे। वे कहते --भैया के शव, माधव, चक्रधर ! आओ--आओ । पुरुषोत्तम ! आओ । हमलोग खेलें । मधुसूदन ! मेरे साथ चलो । खेलते-खाते, पढ़ते-लिखते, हँसते-बोलते, सोते-जागते, खाते-पीते, देखते-सुनते सभी समय वे भगवान्को ही अपने सामने देखते । घर, बाहर, सवारीपर, ध्यान में, ज्ञानमें--सभी कममें, सभी जगह उन्हें भगवानके दर्शन होते और वे उन्हीं को पुकारा करते ।

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