[ सरल ] भारत का संविधान | Bharat Ka Sanvidhan

[ सरल ] भारत का संविधान : सुभाष कश्यप हिंदी पुस्तक मुफ्त डाउनलोड | Bharat Ka Sanvidhan : Subhash Kashyap Hindi Book Free Downoad

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इस पुस्तक का नाम : [ सरल ] भारत का संविधान है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Subhash Kashyap | Subhash Kashyap की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 9.16 MB है | पुस्तक में कुल 43 पृष्ठ हैं |नीचे [ सरल ] भारत का संविधान का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | [ सरल ] भारत का संविधान पुस्तक की श्रेणियां हैं : Uncategorized, india

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पुस्तक का साइज : 9.16 MB
कुल पृष्ठ : 43

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भूमिका शासन एक लिप्सा भी है और शासन ईश्वरीय इच्छा से अन्याय शोषण कुपोषण अधर्म और बुराइयों को वैयक्तिक और राष्ट्रीय जीवन से उपेक्षित करने तथा न्याय विधि व्यवस्था धर्म के चराचर मूल्यों की सुदृढ़ स्थापना के उद्देश्यों की प्राप्ति का एक पवित्र साधन भी है। शासन जब निरपेक्ष तटस्थ ईधरीय प्रेरणा की अनुभूति में स्वीकार किया जाता है तब यह एक आत्मीय भजन बनकर समय के आन्दोलनों को सुसंस्कृत करता है। भारत के जनप्रिय सम्राट में पुरूरंवा से छन्रसाल तक के जनप्रिय राजाओं के कार्यक्रमों को एक सूक्ष्म दृष्टि से देखा गया है। सारे सम्राटों का आकलन करने से पता चल ही जाता है-ये जनप्रिय क्यों रहे? ये अप्रिय क्यों नहीं हुए? साहित्य कला संस्कृति धर्म सेवा उद्योग-कला-कौशल धर्म सेवा शौर्य के गुणों का संगठन जिस सम्राट ने जीवन में किया वह जनप्रिय हुआ और जिसने शासन को अपनी कुप्रवृत्तियों अहं और वासना की पूर्ति का संसाधन बनाया वह विनष्ट हो गया। दूसरे शब्दों में आत्मशक्ति से जिस राजा ने इन्द्रियों पर शासन किया वह जनप्रिय बना और जिस राजा ने इन्द्रियों को. स्वच्छाचारी बनाया वह अप्रिय हो गया। सम्राट होना और जनप्रिय होना- . एक साथ सं भव नहीं होता। अनुशासन राजस्व और प्राशासन के विन्दुओं पर सम्राट कैसे जनप्रिय रह सकता है? पर ऐसे सम्राट हुए हैं जो जनप्रिय रहे हैं। सम्राट पद साधना की एक सफलता है। सम्राट साम्राज्य में जनहित का साधन है। सम्राट के इन्हीं विन्दुओं को सामने रखकर भारत के जनप्रिय सम्राट की इस लघु खोज में पुरूरवा से छत्रसांल-वेदों से चलकर हाल की सदी तक के सम्राटों के जनप्रिय प्रतिनिधि राजाओं के जीवन-दर्शन का स्पर्श मैंने किया है। लक्ष्य है अपने जीवन के रेखाचित्र को भारत के जनप्रिय सम्राटों के लोकप्रियता के रंगों से रंगकर जनप्रिय आज के लोकतंत्र में क्रोई भी हो सकता है। कौन है जो जनप्रियता का रंग नहीं चाहता? जनप्रिय होना. है तो भारत के जनप्रिय सम्राटों की जनप्रियता के रंगों को समझना होगा। इसी से जनप्रियता की वर्तमान चुनौतियों को सामने रखकर भारत के जनप्रियं सम्राट प्रस्तुत कर रहा हूँ। न - फणीन्द्र नाथ चतुर्वेदी

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2 Comments
  1. manish patel says

    good sir

  2. Varinder says

    Link dose not work.

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