भारत के जनप्रिय सम्राट : फणीन्द्र नाथ चतुर्वेदी हिंदी पुस्तक मुफ्त डाउनलोड | Bharat Ke Janpriya Samrat : Phanindra Nath Chaturvedi Hindi Book Free Download के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : भारत के जनप्रिय सम्राट है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Fanindranath Chaturvedi | Fanindranath Chaturvedi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Fanindranath Chaturvedi | इस पुस्तक का कुल साइज 9.16 MB है | पुस्तक में कुल 43 पृष्ठ हैं |नीचे भारत के जनप्रिय सम्राट का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भारत के जनप्रिय सम्राट पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, india, Uncategorized
Name of the Book is : Bharat Ke Janpriya Samrat | This Book is written by Fanindranath Chaturvedi | To Read and Download More Books written by Fanindranath Chaturvedi in Hindi, Please Click : Fanindranath Chaturvedi | The size of this book is 9.16 MB | This Book has 43 Pages | The Download link of the book "Bharat Ke Janpriya Samrat" is given above, you can downlaod Bharat Ke Janpriya Samrat from the above link for free | Bharat Ke Janpriya Samrat is posted under following categories history, india, Uncategorized |
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भूमिका शासन एक लिप्सा भी है और शासन ईश्वरीय इच्छा से अन्याय शोषण कुपोषण अधर्म और बुराइयों को वैयक्तिक और राष्ट्रीय जीवन से उपेक्षित करने तथा न्याय विधि व्यवस्था धर्म के चराचर मूल्यों की सुदृढ़ स्थापना के उद्देश्यों की प्राप्ति का एक पवित्र साधन भी है। शासन जब निरपेक्ष तटस्थ ईधरीय प्रेरणा की अनुभूति में स्वीकार किया जाता है तब यह एक आत्मीय भजन बनकर समय के आन्दोलनों को सुसंस्कृत करता है। भारत के जनप्रिय सम्राट में पुरूरंवा से छन्रसाल तक के जनप्रिय राजाओं के कार्यक्रमों को एक सूक्ष्म दृष्टि से देखा गया है। सारे सम्राटों का आकलन करने से पता चल ही जाता है-ये जनप्रिय क्यों रहे? ये अप्रिय क्यों नहीं हुए? साहित्य कला संस्कृति धर्म सेवा उद्योग-कला-कौशल धर्म सेवा शौर्य के गुणों का संगठन जिस सम्राट ने जीवन में किया वह जनप्रिय हुआ और जिसने शासन को अपनी कुप्रवृत्तियों अहं और वासना की पूर्ति का संसाधन बनाया वह विनष्ट हो गया। दूसरे शब्दों में आत्मशक्ति से जिस राजा ने इन्द्रियों पर शासन किया वह जनप्रिय बना और जिस राजा ने इन्द्रियों को. स्वच्छाचारी बनाया वह अप्रिय हो गया। सम्राट होना और जनप्रिय होना- . एक साथ सं भव नहीं होता। अनुशासन राजस्व और प्राशासन के विन्दुओं पर सम्राट कैसे जनप्रिय रह सकता है? पर ऐसे सम्राट हुए हैं जो जनप्रिय रहे हैं। सम्राट पद साधना की एक सफलता है। सम्राट साम्राज्य में जनहित का साधन है। सम्राट के इन्हीं विन्दुओं को सामने रखकर भारत के जनप्रिय सम्राट की इस लघु खोज में पुरूरवा से छत्रसांल-वेदों से चलकर हाल की सदी तक के सम्राटों के जनप्रिय प्रतिनिधि राजाओं के जीवन-दर्शन का स्पर्श मैंने किया है। लक्ष्य है अपने जीवन के रेखाचित्र को भारत के जनप्रिय सम्राटों के लोकप्रियता के रंगों से रंगकर जनप्रिय आज के लोकतंत्र में क्रोई भी हो सकता है। कौन है जो जनप्रियता का रंग नहीं चाहता? जनप्रिय होना. है तो भारत के जनप्रिय सम्राटों की जनप्रियता के रंगों को समझना होगा। इसी से जनप्रियता की वर्तमान चुनौतियों को सामने रखकर भारत के जनप्रियं सम्राट प्रस्तुत कर रहा हूँ। न - फणीन्द्र नाथ चतुर्वेदी