भारत में नारी शिक्षा : जे सी अग्रवाल | Bharat Mein Naari Shiksha : J C Agrawal

भारत में नारी शिक्षा : जे सी अग्रवाल  | Bharat Mein Naari Shiksha : J C Agrawal

भारत में नारी शिक्षा : जे सी अग्रवाल | Bharat Mein Naari Shiksha : J C Agrawal के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : भारत में नारी शिक्षा है | इस पुस्तक के लेखक हैं : JC Ahrawal | JC Ahrawal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 2.7 MB है | पुस्तक में कुल 164 पृष्ठ हैं |नीचे भारत में नारी शिक्षा का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भारत में नारी शिक्षा पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, india, women

Name of the Book is : Bharat Mein Naari Shiksha | This Book is written by JC Ahrawal | To Read and Download More Books written by JC Ahrawal in Hindi, Please Click : | The size of this book is 2.7 MB | This Book has 164 Pages | The Download link of the book "Bharat Mein Naari Shiksha" is given above, you can downlaod Bharat Mein Naari Shiksha from the above link for free | Bharat Mein Naari Shiksha is posted under following categories education, india, women |

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पुस्तक का साइज : 2.7 MB
कुल पृष्ठ : 164

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सती-माहात्म्य फल प्राप्त करती है-इसमें तनिक भी सदेह नहीं है। जैसे सर्प पकडनेवाला सँपेरा साँपको उसके बिलसे बलपूर्वक निकाल लेता है, उसी प्रकार सती स्त्री अपने पतिको यमदूतोंके हायसे छीनकर स्वर्गलोकमें जाती है। उस पतिव्रता देवीको देखकर यमदूत खय भाग जाते हैं । पतिव्रताके तेजका अलोकन करके सबको तपानेवाले सूर्यदेव खय सतप्त हो उठते हैं, दूसरों को जलानेवाले अग्निदेव भी खय ही जलने लगते हैं तथा त्रिभुवनके सम्पूर्ण तेज काँप उठते हैं । अपने शरीरमें जितने रोएँ है, उतने अयुतकोटि ( उतने ही सर्व ) वर्षोंतक पतिव्रता स्त्री स्वर्गमें पतिके साथ विहार करती हुई सुख भोगती है । ससारमें वह माता वन्य है, वह पिता धन्य है तथा वह भाग्यपन्ि पनि धन्य है, जिनके घरमें पतिव्रता सी विराजती है । पतिव्रता स्त्रीके पुण्यसे उसके पिता, माता और पति-इन तीनोंके कुओंकी तीन-तीन पीढियाँ स्वर्गलोकमें जाकर सुख भोगती हैं। पतिव्रताका चरण जहाँ-जहाँ धरतीफा स्पर्श करता है, वह स्थान तीर्थभूमिकी भाँति मान्य है । वह भूमिपर कोई भार नहीं रहता, वह स्थान परम पावन हो जाता है। सूर्य भी डरते-डरते ही अपने किरणेंसे पतिव्रताको स्पर्श करते हैं । चन्द्रमा और गन्धर्व आदि अपनेको पवित्र करने के लिये ही उसका स्पर्श करते हैं और किसी भावसे नहीं । जल सदा पतिव्रता देवीके चरण-स्पर्शकी अभिलाषा रखता है । वह जानता है कि गायत्रीके द्वारा जो हमारे पापका नाश होता है, उसमें उस देवीका पातिव्रत्य ही कारण है। पातिवयके बलसे ही वह हमारे पापका नाश करती है ? क्या

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