भारतीय स्वतंत्रता संग्राम : ब्रजवासी लाल अग्रवाल | Bhartiya Swatantrata Sangaram : Brij Vashi Lal Agrawal के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Brij Vashi Lal Agrawal | Brij Vashi Lal Agrawal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Brij Vashi Lal Agrawal | इस पुस्तक का कुल साइज 43.1MB है | पुस्तक में कुल 246 पृष्ठ हैं |नीचे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक की श्रेणियां हैं : history
Name of the Book is : Bhartiya Swatantrata Sangaram | This Book is written by Brij Vashi Lal Agrawal | To Read and Download More Books written by Brij Vashi Lal Agrawal in Hindi, Please Click : Brij Vashi Lal Agrawal | The size of this book is 43.1MB | This Book has 246 Pages | The Download link of the book "Bhartiya Swatantrata Sangaram" is given above, you can downlaod Bhartiya Swatantrata Sangaram from the above link for free | Bhartiya Swatantrata Sangaram is posted under following categories history |
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उसी समय परोप के देशों में शासन में सुधार हेतु आवाज उठाई गयी और आन्दोलनों का सूत्रपात किया। जैसे इटली, जर्मनी कानिया के राजनैतिक आन्दोलनों ने तथा अस में तृतीय गणराज्य की स्थापना आदि घटनाओं ने भारतीयों के मज्ञिक पर स्वतन्त्र प्रभाव डाला और भारतीयों को भी इन अन्दोलनों से स्वाधीनता के लिए समर्ष करने की शिक्षा मिती। भारतीय सीमा के बाहर घटित इन घटनाओं में भारतीय राष्ट्रवाद ॐ धारा को स्वाभाविक रूप से प्रभावित किया।
भारतीयों में बढ़ते हुए इस असन्तोष को देखकर छूम नामक सेवा निवृत्त अंग्रेज अधिकारी द्वारा ही सन् १८८५ ई में कार्पस नाम संस्था की स्थापना की गयी जिससे कि सभी भारतीय एक मंच पर आकर एकता के सूत्र में बंधकर अपने असंतोष को अंग्रेजी सरकार के सम्मुख व्यक्त कर सके। वास्तव में छुम गहोदय ने कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा की दृष्टि से की है। कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य कुछ भी रहा हो लेकिन यह सच है कि इस संस्था की स्थापना होने से भारत के कोने कोने के नता एक मंच पर आकर एकता के सूत्र में बंध गये और 1 अ में शासन सभी सुधारों की मांग करने लगे।
प्रारम्भ में कांग्रेस में उदारवादियों का बोलबाला रहा। उदारवादियों ने ब्रिटिश शाह के प्रति विश्वास तथा सहयोग को नीति अपनायी और याचना, स्मृतिपत्री एवं प्रतिनिधि मंडलों के आधार पर जनता को राजनैतिक अधिकार दिलाने के लिए प्रयास किये। लेकिन उनकी इस प्रकार को उदार नीति का अंग्रेजों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस में भी उग्रवादियों का एक दल १९:०६ ई. में गठित है। इस उग्रवादी दल के नेता थे बालगंगाधर तिलके जिन्होंने स्पष्ट घोषणा की कि स्वान्ता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। उपयादी दल में तीन
शक्तों के नाम विशेष उल्लेखनीय है कि ता तापत राय एवं विपिन चन्द्रपाल। वादी दल का मुख्य उद्देश्य स्वतन्त्रता की प्राप्ति
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