भूख : चित्रा मुद्गल | BHOOKH : Chitra Mudgal

भूख : चित्रा मुद्गल | BHOOKH : Chitra Mudgal

भूख : चित्रा मुद्गल | BHOOKH : Chitra Mudgal के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : भूख है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Chitra Mudgal | Chitra Mudgal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 17.2 MB है | पुस्तक में कुल 133 पृष्ठ हैं |नीचे भूख का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भूख पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Bhookh | This Book is written by Chitra Mudgal | To Read and Download More Books written by Chitra Mudgal in Hindi, Please Click : | The size of this book is 17.2 MB | This Book has 133 Pages | The Download link of the book "Bhookh" is given above, you can downlaod Bhookh from the above link for free | Bhookh is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 17.2 MB
कुल पृष्ठ : 133

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*वह सपना भी है'•••
इधर इस बात पर गौर किया जाना जरूरी लग रहा हैं कि क्या साहित्य से लोक और लोकहित खारिज हो रहा है। चेतनावादी और पदार्थवादी दृष्टियाँ, जिनकी मूल भावना में लोकहित सर्वोपरि है, मान लिया जाए कि धुंध में घुमड़ रही हैं और निकलने के दरवाजे खोजना उनकी आज की सबसे प्रमुख अनिवार्यता हो रही है। साहित्य में यूटोपिया की भूमिका को लेकर भी कम चिंतित नहीं हो रहे हैं चिंतक। यूटोपिया का सर्जना में क्या स्थान होना चाहिए, कितना होना चाहिए, होना चाहिए। भी या नहीं-इस और विचार करने की महती जरूरत पर भी उँगली रखी जा रही है। एक वक्त यूटोपिया को अवांछित सिद्ध कर उससे किनारा किए जाने की आवश्यकता रेखांकित की गई थी। यह लौटना क्यों ? आदर्श और सपने बुनियादी जरूरतों के खाली दहकते पेटों का कौर हो सकते हैं? जो कभी वास्तविकता का जमा नहीं पहन सकता, उस ओर लौटने की बात हमारी निरुपायता या विकल्पहीनता का द्योतक हैं या जब आँख खुली तब सवेरा होने का!
मुझे लगता है, लिखना मात्र लोकहित में लोक की जड़ता पर प्रहार करना भर नहीं है। इस समाज को हम किस रूप में देखना चाहते हैं, कैसा देखना चाहते हैं-वह सपना भी है।
'इस हमाम में' कथा संकलन की सारी कहानियाँ 'भूख' में संकलित हैं। खुशी इस बात की है कि ये मेरी वो कहानियाँ हैं जिन्हें पाठकों ने अपार स्वीकार्य दिया। लगभग संकोच में डालने की सीमा तक। 'वाइफ स्वैपी' को मैंने दुबारा लिखा है। इस हमाम में ' संकलित हो जाने के बावजूद मैं उसके फॉर्म से संतुष्ट नहीं थी। कह नहीं सकती कि आप मेरे असंतोष से सहमत हो पाएँगे या नहीं, मगर मैं स्वीकार करती हूँ कि मुझपर बराबर एक दबाव सा बना रहा 'वाइफ स्वैपी' को लेकर

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