दहला पागल हो गया : शांतिप्रकाश | Dahala Pagal Ho Gaya : Shanti Prakash के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : दहला पागल हो गया है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shanti Prakash | Shanti Prakash की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Shanti Prakash | इस पुस्तक का कुल साइज 1.2MB है | पुस्तक में कुल 108 पृष्ठ हैं |नीचे दहला पागल हो गया का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | दहला पागल हो गया पुस्तक की श्रेणियां हैं : comedy
Name of the Book is : Dahala Pagal Ho Gaya | This Book is written by Shanti Prakash | To Read and Download More Books written by Shanti Prakash in Hindi, Please Click : Shanti Prakash | The size of this book is 1.2MB | This Book has 108 Pages | The Download link of the book "Dahala Pagal Ho Gaya" is given above, you can downlaod Dahala Pagal Ho Gaya from the above link for free | Dahala Pagal Ho Gaya is posted under following categories comedy |
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कितने ही नुमा नै नतिजा तथा अबतारबाद के शास्त्राथों में पौराणिक के विरुद्ध व्यवस्था दी । उनको शाप क्यों दिश्चाते हैं। कोट मद्द, में सरदार झा दान प्रानरे जिस्ट्रेट ने अपनाराई के शास्त्रार्थ में मध्यरथ बन कर मेरे पक्ष में निर्णय दिया था घोर पं० थी कृष्ण शास्त्री के विरुद्ध अपना लिजित निर्णय घोषित किया था। यह शास्त्राचे पुस्तक रूप में छापा गया था। उसमें सरदार रांझा खान का निर्णय मी छपा था। झोक उड़ा जिला दे माजी खान के शास्त्रात्र में वो मुहम्मद कैफो ने नियोग के शास्त्रों में मेरे पक्ष में घोषणा की थी। तथा वहां की सनातन धर्म सना के प्रधान भीम टेकभी ने भी प्रार्य समाज को विजयी घोषित किया था । जिससे पौराणिक विद्वान् रात में ही गहां से भाग खड़ा हुआ । गायन शिला करनाल के दोनों शास्त्रीयों में पं० माषाभायं की पराजय और आर्यसमाज की जीत धोपित हुई थी। इसी प्रकार धुनौदा ( महेश गा) में संस्त के लिखित शास्त्रार्थ 17 हिन्द के शास्त्रार्थों में एक मानाचार्य की पराजय सौर मार्य समाज की जीत हुई थी। अन्य अनेक शास्त्रार्थ में पौराणिक पंडितों को आर्यसमाज के मागे पराजित होना पड़ा। यह सब प्रमाण भी पुस्तकों और तत्कालीन समाचार पत्रों में भरे पड़े हैं। इनसे आ मुद लेना न्याय नहीं है।
शास्त्र ज्ञाब्दी समारोह सम्बन्धी पुस्तक में वो मृतिपूजा सम्बन्धी बयां हो चलानी चाहिये थी। विषयान्तर में जा कर गाली-गलौज से काम | लेना अपके लिये जोगादामक नहीं था। वही नियोग की बात । जब पौराशिक पंडित चाहे इस विषय पर शास्त्रार्थ कर सकते हैं । अर्थ समाज प्रतिसमय समुञ्चत है। आप एक दो विधमों लोगों के तथाकथित विरोध को आर्य समाज के विरुद्ध डानने में कथान पर प्रार्य ऋपिनों के इतिहास की सा। । निर्णय का सार स्थीकारें तब तो बात बने । लौजिपं कुड़ उदाहरण आपको मैया में समुपस्थित किये ही देता हैं। बेद महाभारत तथा मनु आदि धर्म शास्त्रों में नियोग को धर्म कहा है :-