दौड़ : ममता कालिया हिंदी पुस्तक | Daud : Mamta Kalia Hindi Book

दौड़ : ममता कालिया हिंदी पुस्तक | Daud : Mamta Kalia Hindi Book

दौड़ : ममता कालिया हिंदी पुस्तक | Daud : Mamta Kalia Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Mamta Kaliya | Mamta Kaliya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 0.74 MB है | पुस्तक में कुल 46 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : | This Book is written by Mamta Kaliya | To Read and Download More Books written by Mamta Kaliya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 0.74 MB | This Book has 46 Pages | The Download link of the book "" is given above, you can downlaod from the above link for free | is posted under following categories Stories, Novels & Plays |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 0.74 MB
कुल पृष्ठ : 46

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8292016 शुद्धिकरण संयंत्र बनाने की। एक हर्बल स्प्रे भी बनानेवाल्ली है। उसे एक बार नाक के पास स्प्रे कर लो तो धुएँ का प्रदूषण आपकी साँस के रास्ते अंदर नहीं जाता। और जो प्रदूषण आँख और मुँह के रास्ते जाएगा वह? तो मुँह बंद रखो और आँख में डालने को आइ ड्रॉप ले आओ। पवन के मुँह से निकल जाता है मेरे शहर में प्रदूषण नहीं है। आ हा हा पूरे विश्व में प्रदूषण चिंता का विषय है और ये पवन कुमार आ रहे हैं सीधे स्वर्ग से कि वहाँ प्रदूषण नहीं हैं। तुम इलाहाबाद के बारे में रोमांटिक होना कब छोड़ोगे? रोजू हँसती है वॉट ही मींस इज वहाँ प्रदूषण कम है। वैसे पवन मैंने सुना है यू पी में अभी भी किचन में लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनता है। तब तो वहाँ घर के अंदर ही धुआँ भर जाता होगा? इलाहाबाद गाँव नहीं शहर है कावल टाउन। शिक्षा जगत में उसे पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहते हैं। शिल्पा काबरा बातचीत को विराम देती है ठीक है अपने शहर के बारे में थोड़ा रोमांटिक होने मैं क्या हर्ज है। पवन कृतज्ञता से शिल्पा को देखता है। उसे यह सोच कर बुरा लगता है कि शिल्पा की गैरमौजूदगी में वे सब उसके बारे में हल्केपन से बोलते हैं। पवन का ही दिया हुआ लतीफा है शिल्पा काबरा शिल्पा का ब्रा। विश्वास नी जोत घरे-घरे गुर्जर गैस लावे छे यह नारा है पवन की कंपनी का। इस संदेश को प्रचारित-प्रसारित करने का अनुबंध शीबा कंपनी को साठ लाख मैं मिला है। उसने भी सड़कें और चौराहे रँग डाले हैं। अटैची में कपड़े आँखों में सपने और अंतर में आकुलता लिए न जाने कहाँ-कहाँ से नौजवान लड़के नौकरी की खातिर इस शहर में आ पहुँचे हैं। बड़ी-बड़ी सर्विस इंडस्ट्री मैं कार्यरत ये नवयुवक सबेरे नौ से रात नौ तक अथक परिश्रम करते हैं। एक दफ्तर के दो-तीन लड़के मिल कर तीन या चार हजार तक के किराए का एक फ्लैट ले लेते हैं। सभी बराबर का शेयर करते हैं किराया दूध का बिल टायलेट का सामान लांड्री का खर्च। इस अनजान शहर में रम जाना उनके आगे नौकरी में जम जाने जैसी ही चुनौती है हर स्तर पर। कहाँ अपने घर में ये लड़के शहजादों की तरह रहते थे कहाँ सारी सुख-सुविधाओं से वंचित घर से इतनी दूर ये सब सफलता के संघर्ष में लगे हैं। न इन्हें भोजन की चिंता है न आराम की। एक आँख कंप्यूटर पर गड़ाए ये भोजन की रस्म अदा कर लेते हैं और फिर लग जाते हैं कंपनी के व्यापार लक्ष्य को सिद्ध करने में। जाहिर है व्यापार या लाभ लक्ष्य इतने ऊँचे होते हैं कि सिद्धि का सुख हर एक को हासिल नहीं होता। सिद्धि इस दुनिया में एक चार पहिया दौड़ है जिसमें स्टियरिंग आपके हाथ में है पर बाकी सारे कंट्रोल कंपनी के हाथ में। वही तय करती है आपको किस रफ्तार से दौड़ना है और कब तक।एल पी जी विभाग में काम करने वालों के हौसले और हसरतें बुलंद हैं। सबको यकीन है कि वे जल्द ही आई-ओ सी को गुजरात से खदेड़ देंगे। निदेशक से ले कर डिलीवरी मैन तक में काम के प्रति तत्परता और तन्मयता है। मेन नगर में जहाँ जी जी सी एल का दफ्तर है वह एक खूबसूरत इमारत है तीन तरफ हरियाली से घिरी। सामने कुछ और खूबसूरत मकान हैं जिनके बरामदों में विशाल झूले लगे हैं। बगल में सेंट जेवियर्स स्कूल है। छुट्टी की घंटी पर जब नीले यूनीफार्म पहने छोटे-छोटे बच्चे स्कूल के फाटक से बाहर भीड़ लगाते हैं तो जी जी सी एल के लाल सिलिंडरों से भरे लाल वाहन बड़ा बढ़िया कांट्रास्ट बनाते हैं लाल नीला नीला लाल। 646

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