दीर्घतमा (हिंदी उपन्यास): सूर्यकांत बाली | Deerghatma : Suryakant Bali के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : दीर्घतमा है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Suryakant Bali | Suryakant Bali की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Suryakant Bali | इस पुस्तक का कुल साइज 43 है | पुस्तक में कुल 259 पृष्ठ हैं |नीचे दीर्घतमा का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | दीर्घतमा पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, Uncategorized
Name of the Book is : Deerghatma | This Book is written by Suryakant Bali | To Read and Download More Books written by Suryakant Bali in Hindi, Please Click : Suryakant Bali | The size of this book is 43 | This Book has 259 Pages | The Download link of the book "Deerghatma" is given above, you can downlaod Deerghatma from the above link for free | Deerghatma is posted under following categories Stories, Novels & Plays, Uncategorized |
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मैंने देखा कि प्रद्वेष का हृदय मेरे प्रति अनुराग से भर गया है। जब मेरे मंत्रगान के बाद पूरे सभास्थल में हर्षनाद भर उठा था तो मैंने देखा कि प्रद्वेषी मुझसे लिपट जाने को आतुर हो रही थी और संभवतः अवसर की मर्यादा ने उसे रोक लिया था। प्रद्वेषी, तुमने अपने हृदय की सारी व्याकुलता
और उत्कंठा को अपने आई करस्पर्श से व्यक्त कर दिया। प्रसन्नता और प्रणय के कारण तुम्हारे हाथ गीले हो गए थे और काँप रहे थे।"
बोलते-बोलते दीर्घतमा क्षणभर के लिए चुप हो गए और फिर पूछने लगे, “बोलो प्रद्वेषी, बोलो, यह सत्य है न ? बोलो, यह सत्य हैं न ?” | "हाँ आर्य सत्य है। आर्य, यदि अनजाने में अपराध हो गया हो तो क्या आप मुझे क्षमा नहीं कर देंगे ?"
“प्रद्वेषी, तुम इस महाभाव को अपराध क्यों कहती हो ? जब आकाश में काले मेध छा जाते हैं और आकाश को अपने अंक में भर लेना चाहते हैं तो क्या वे अपराध करते हैं ? जब चपला विद्युत इन काले मेघों के अतिनिकट जाकर उनके परिपूर्ण हुद्दय का जल पी लेना चाहती है तो क्या वह अपराध कर रही होती है ? जब मेघों का जल पृथ्वी के तल पर बरसकर पृथ्वी को तृप्त कर देने को व्याकुल हो उठता हैं तो क्या तुम उस जल को अपराधी कहोगी ? सूर्य की किरणों का रस पीकर यदि वनस्पतियों प्रसन्न होकर मदोन्मत्त हो जाती हैं तो क्या थे वनस्पतियों अपराधी हैं ? तो क्या समुद्र का जल भी अपराधी है जो वह पूर्णचंद्र को देखकर उसे पाने को व्याकुल हो उठता है और जब तक चक कर शांत नहीं हो जाता तब तक वह शक्तिभर ऊपर उठ-उठकर अपनी व्याकुलता दिखाता रहता है ?" । प्रहेषी हर्षातिरेक में मानो झूम उठी थी। बोलते-बोलते दीर्घतमा रुक गए। प्रद्वेषी के हाथ दोनों हाथों से थामते हुए बोले, "इस समस्त प्रकृति में हर कोई दूसरे के निकट आना चाहता है। प्रदेश, क्या तुम मेरे निकट नहीं आई हो ? Hो अर्थ दीर्घतमा कहकर अब तक तुम सम्मान के मार्ग पर चलकर मेरे निकट आई थीं। अब प्रणय के राजमार्ग पर व्याकुलता से दौड़कर तुम मेरे पास आई हो तो प्रहेष, तुम कोई अपराध नहीं कर रही हो, एक प्राकृतिक और स्वाभाविक कर्म कर रही हो। अपने को उस महाभाव से जोड़ रही हो। मैं तो दस वर्ष की आयु में प्रौद हो गया था और अब मैं देर से युवा हुआ हैं, यह तो समझ में आता है। पर अद्वेषी, तुम क्यों इतने वर्षों तक बालिका बनी रहीं ? प्रद्वेषी, कुछ तो बोलो ?" | "आर्य, मैं इतनी गहराई में नहीं जा सकती जैसे आप इतने सहज रूप से चले जाते हैं। हो सकता है कि मेरे इदर का कोई अज्ञात कोना आपके युवा होने की प्रतीक्षा कर रहा हो और मुझे इसका कभी इससे पहले आभास तक
दीर्घतमा