कतरा दर कतरा : सुषम बेदी हिंदी पुस्तक | Katra Dar Katra : Susham Bedi Hindi Book

कतरा दर कतरा : सुषम बेदी हिंदी पुस्तक | Katra Dar Katra : Susham Bedi Hindi Book

कतरा दर कतरा : सुषम बेदी हिंदी पुस्तक | Katra Dar Katra : Susham Bedi Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 0.25 MB है | पुस्तक में कुल 70 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : | This Book is written by | To Read and Download More Books written by in Hindi, Please Click : | The size of this book is 0.25 MB | This Book has 70 Pages | The Download link of the book "" is given above, you can downlaod from the above link for free | is posted under following categories Stories, Novels & Plays |


पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 0.25 MB
कुल पृष्ठ : 70

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

डाक्टर को दिखायेंगे क्योंकि आम डाक्टर उसकी कोई वजह नहीं बता पा रहे थे। हमारे शहर जालंधर में कोई स्पेशलिस्ट नहीं था इसलिये रेलगाड़ी से मां -पिताजी कक्क्‌ और में अमृतसर मेरे इलाज के लिये गये। कक्क्‌ इसलिये कि वह हर जगह मां - पिताजी के साथ ज़रूर जाता था। एक इस वजह से भी उससे मुझे ईर्ष्या हुआ करती थी लेकिन उसका साथ चलना अब तो खूब भा रहा था। हम दोनों रास्ते भर खूब खेलते रहे थे। वहां डाक बंगले में पहुंचकर हमने खूब उधम मचाया। लेकिन वहां के बेरे हमारी खातिर करते रहे। हम दोनों पहली बार इस तरह छु०्छी मनाने निकले थे । हमारी एक बार भी लड़ाई नहीं हुई। न ही वहां कभी मेरा पेट दर्द हुआ। ख़ैर अगली सुबह से डाक्टर का चेकअप शुरु हो गया। खून टी पेशाब हर तरह के टेस्ट हुए लेकिन कहीं कूछ ख़राबी नहीं निकली। उल्टे वहां मुझे और कक्क्‌ू को इतनी भूख लगती थी कि हम दोनों कई गुना ज़्यादा खाना खा जाते थे। डाक बंगले का खानसामा इतनी महीन और नरम चपातियां बनाता था कि मैं दस-दस चपातियां खा जाती थी और पेट को कुछ नहीं होता था। तीन दिन में सारे टेस्ट खत्म हो गये। जब डाक्टर को क्‌छ नहीं मिला तो उसने मां -पिताजी से मेरा मनोवैज्ञानिक इतिहास पूछना शुरु किया --क्या मुझे किसी तरह का असंतोष तो नहीं है कया में सामान्यता खुश रहती हूं या कि कुढ़ती -चिढ़ती रहती हूं मां ने कहना तो शुरू किया कि में आम तौर पर खुश रहनेवाली लड़की हूं फिर जैसे बात की रौ में उन्होंने यह भी लगा दिया कि इसकी अपने भाई से बहुत लड़ाई होती है--दोनों में बड़ी होड़ रहती है। बस डाक्टर तो इस बात को पकड़ कर ही बैठ गया। उसे शायद मां -पिताजी की तसलली के लिये कोई कारण देना ही था। मेरा शारीरिक विकास भी नौ साल की उम्र के हिसाब से बिल्कूल सही था इसलिये किसी बड़ी अंदरूनी बीमारी को खोज पाना भी उसे मुमकिन नहीं दीखा होगा। झट से बोला- बस यही बात है । इसे अपने भाई से जब ईर्ष्या होती है तब ये आपका ध्यान आकर्षित करने के लिये पेटदर्द की शिकायत करती है--वर्ना पेटदर्द की और कोई वजह ही नहीं है आपकी बेटी एकदम दुरुस्त है वह डाक्टर इंगलैंड-रिटर्नड था। मां - पिताजी उसके इस निदान से बेहद प्रभावित हुए। बस उस दिन के बाद से उन्हें चर्चा का बड़ा दिलचस्प विषय मिल गया था। सारे रिश्तेदारों को डाक्टर की वाहवाही कर -कर के यही बात सुनायी जाती। मेरे मन को बहुत चोट लगती। मुझे लगता जैसे सबके सामने मुझे नंगा किया जा रहा है।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.