दिवास्वप्न : गिजुभाई बधेका | Divaswapna : Gijubhai Badheka के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : दिवास्वप्न है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Gijubhai Badheka | Gijubhai Badheka की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Gijubhai Badheka | इस पुस्तक का कुल साइज 2.3 MB है | पुस्तक में कुल 56 पृष्ठ हैं |नीचे दिवास्वप्न का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | दिवास्वप्न पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Divaswapna | This Book is written by Gijubhai Badheka | To Read and Download More Books written by Gijubhai Badheka in Hindi, Please Click : Gijubhai Badheka | The size of this book is 2.3 MB | This Book has 56 Pages | The Download link of the book "Divaswapna" is given above, you can downlaod Divaswapna from the above link for free | Divaswapna is posted under following categories Stories, Novels & Plays |
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मैंने पूछा-'तुमने कहानी की जो-जो किताबें पढ़ी हों, उनके नाम तो बोलो ।' कुछ लड़कों ने दो-चार कहानियाँ पढ़ी थीं । वे चौथी कक्षा तक आ चुके थे, फिर भी उन्होंने पाठ्यपुस्तकों को छोड़कर और पुस्तकें बहुत ही कम पढ़ी थीं।
दिवास्वप्न 12
सब बहुत ही प्रसन्न दिखाई पड़े।
फिर कहानी आगे चली, सो घण्टी बजने तक । छुट्टी हुई और मैंने कहा-“भाई, एक बात सुनते जाओ । गोले पर बैठकर सुनो। कल ये नाखून कटवाकर आना, भला ! खुद काट सको, तो खुद काट लेना, नहीं तो बाबूजी से कहना या फिर नाई आए, तो उससे कटवा लेना।'
एक बोला-'जी मैं तो दांत से काट लुगा ।'
मैंने कहा-'नहीं भाई, ऐसा न करना । नाखून या तो नहनी से कटते हैं या छरी से।'
मैंने फिर कहा-'एक तमाशा हम और करेंगे। सब बोले-‘बह क्या ?'
"तुम नंगे सिर पाठशाला आयो करो। यह गन्दो टोपी किस काम की ? और हमें टोपी की जरूरत ही क्या है ?
| सब हँस पड़े। कहने लगे-'भला, नंगे सिर मदरसे आ भी सकते हैं ? प्रधानाध्यापक नाराज़ न होंगे ?"
मैंने कहा-'कल से मैं नंगे सिर ही आऊँगा और तुम भी सब आना ।।