दिवास्वप्न हिंदी पुस्तक पीडीऍफ़ में | Diwaswapn hindi book in pdf के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : दिवास्वप्न है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Gijubhai Badheka | Gijubhai Badheka की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Gijubhai Badheka | इस पुस्तक का कुल साइज 4.57 MB है | पुस्तक में कुल 94 पृष्ठ हैं |नीचे दिवास्वप्न का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | दिवास्वप्न पुस्तक की श्रेणियां हैं : Uncategorized
Name of the Book is : Diwaswapn | This Book is written by Gijubhai Badheka | To Read and Download More Books written by Gijubhai Badheka in Hindi, Please Click : Gijubhai Badheka | The size of this book is 4.57 MB | This Book has 94 Pages | The Download link of the book "Diwaswapn" is given above, you can downlaod Diwaswapn from the above link for free | Diwaswapn is posted under following categories Uncategorized |
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भूमिका बच्चों के शिक्षक को लाचारी और जड़ता के जिन बंधनों में उपनिवेशी शासन ने कोई हेढ सौ बरस हुए बांधा था वे अभी कटे नहीं हैं । इस बीच स्कूली व्यवस्था के फैलाव के साथ शिक्षा देश के हरेक कोने में जा पहुंची है । अध्यापक की उदासीन मानसिक अवस्था को सहन करना इस प्रकार करोड़ों बच्चों की विवशता बन गया | शायद ही कोई ऐसा अध्यापक होगा जो अपने बच्चों को आसपास की दुनिया से बेखबर रहकर जीना सिखाना चाहता हो । पर स्कूल की संस्कृति ही कुछ ऐसी बन गई है कि कीड़ों से लेकर सितारों तक दुनिया की तमाम चीजें कक्षा की पढ़ाई से बाहर मानी जाती हैं । एक औसत शिक्षक यह मानकर चलता है कि उसका काम पाठ्यक्रम पढ़ा देना और बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार करना है । बच्चे की उत्सुकता का विकास शिक्षक न अपनी जिम्मेदारी में शामिल समझता है न स्कूल में ऐसी परिस्थितियां हैं जिनमें वह इस जिम्मेदारी को निभा सके । यह स्थिति गुजरात के महान शिक्षाविद्र और बाल-शिक्षक गिजुभाई बधेका (1885-1939) की पुस्तक दिवास्वप्न के पुनर्प्काशन और प्रसार के लिए एकदम अनुकूल है । यह पुस्तक पहली बार 193 2 में मूलत गुजराती में प्रकाशित हुई थी और उसी वर्ष मध्य प्रदेश के यशी शिश्ाविद काशिनाथ त्रिवेदी ने इसका अनुवाद हिंदी में स्वयं प्रकाशित किया था । सही काम की सफलता के लिए धैर्य त्रिवेदी जी ने गांधी से सीखा था । दिवास्वप्न सहित गिजुभाई के समूचे शिक्षा साहित्य के व्यापक प्रसार का उनका सपना आज सफलता के कुछ समीप पहुंचा है । पर शिक्षा में परिवर्तन लाने का सपना उस राह पर काफी संघर्ष करके ही सफल हो सकता है जिस पर गांधी टैगोर और गिजुभाई आगे बढ़े थे । इन तीनों के शिक्षाविज्ञान का सार है बच्चे को स्वतंत्रता और स्वावलम्बन का माहौल बना देना । गिजुभाई ने 1920 में अपने बालमंदिर की स्थापना करके इस मूल सिद्धांत को एक संस्थायी आधार दिया और फिर अपने दैनिक व्यवहार व लेखन में उसके नाना आयामों को पहचाना । दिवास्वप्न एक ऐसे शिक्षक की काल्पनिक कथा है जो