नेपोलियन की जीवनी हिंदी पीडीऍफ़ में डाउनलोड करें मुफ्त | Download Nepoleon Bonaprte Ki jivni Hindi PDF Free |

नेपोलियन की जीवनी हिंदी पीडीऍफ़ में डाउनलोड करें मुफ्त |  Download Nepoleon Bonaprte Ki jivni Hindi PDF Free |

नेपोलियन की जीवनी हिंदी पीडीऍफ़ में डाउनलोड करें मुफ्त | Download Nepoleon Bonaprte Ki jivni Hindi PDF Free | के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : नेपोलियन की जीवनी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Radhamohan Gokul | Radhamohan Gokul की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 20.16 MB है | पुस्तक में कुल 257 पृष्ठ हैं |नीचे नेपोलियन की जीवनी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | नेपोलियन की जीवनी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, Uncategorized

Name of the Book is : Nepoleon Bonaprte Ki jivni | This Book is written by Radhamohan Gokul | To Read and Download More Books written by Radhamohan Gokul in Hindi, Please Click : | The size of this book is 20.16 MB | This Book has 257 Pages | The Download link of the book "Nepoleon Bonaprte Ki jivni" is given above, you can downlaod Nepoleon Bonaprte Ki jivni from the above link for free | Nepoleon Bonaprte Ki jivni is posted under following categories Biography, Uncategorized |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 20.16 MB
कुल पृष्ठ : 257

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पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

॥ ओम ॥ सम्पादक की प्रस्तावना। न फ्िवदका आदित्य प्रन्थमाछा की पहिली मणि सवसाधारण के सन्मुख रख कर मुझे बहुत ही प्रसन्नता हुई है । जिस आर्य्यभाषा की उन्नति के ल्यि मैंने उर्दू के उस्तादों की झाड़ें सहकर भी उसका क्रमश प्रवेश उदू दानों की वाणी तथा हृदय में कराने का प्रयत्न किया जिस मातृ भाषा को उस की प्राचीन राजधानी फ्चनद प्रधान देश में फिर से अधिकार दिलाने के लिये सहख्रों .की आर्थिक हानि की परवा न की जिस देवी को उसका प्राचीन राजसिहासन दिलाने के प्रयत्न करने वाछे भारतभूष्णों के पीछे चलकर में अब तक केवल उनके पुरुषाथ की स्तुति कर- ने में अपने कत्तव्य की समाप्ति समझता रहा उसके प्रकाशमय कोष की पूर्ति में एक नए ग्रन्थ के सम्पादन द्वारा सेवक का पद उपलब्ध करना मेरे छिये आज बड़ा ही आल्हादजनक है । आय्यभाषा के साहित्य में यह ग्रन्थमाला एक स्वतन्त्र स्थान ग्रहण करे यह मेरी हार्दिक इच्छा है । एक नए प्रन्थकर्ता के पुरुषार्थ का यह जावनचरित पहिला फल है जिस का आदर होने पर आशा है कि आय्यमाषा प्रेमियों के मनोर॑नन तथा शिक्षा का नित्य नया प्रबन्ध होता रहेगा । इस ग्रन्थमाला में मणि पिरोने का काम करने के लियि मातृ- भाषा के अन्य भक्त भी तय्यार होरहे हैं । परमात्मा आशीर्वाद दे कि आदित्य बारवार उदय होकर आय्यजनाति को प्रकाश देता रहे । मुंशीराम जिज्ञासु स्थान गुरुकुल

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