मध्यपूर्व की प्राचीन जातियाँ और सभ्यताएं | Madhyapurv Ki Prachin Jatiyan Aur Sabhyayan

मध्यपूर्व की प्राचीन जातियाँ और सभ्यताएं : राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह | Madhyapurv Ki Prachin Jatiyan Aur Sabhtayen : Rajeshvar Prasad Narayan Singh

मध्यपूर्व की प्राचीन जातियाँ और सभ्यताएं : राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह | Madhyapurv Ki Prachin Jatiyan Aur Sabhtayen : Rajeshvar Prasad Narayan Singh के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : मध्यपूर्व की प्राचीन जातियाँ और सभ्यताएं है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Rajeshvar Prasad Narayan Singh | Rajeshvar Prasad Narayan Singh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 8.8 MB है | पुस्तक में कुल पृष्ठ हैं |नीचे मध्यपूर्व की प्राचीन जातियाँ और सभ्यताएं का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मध्यपूर्व की प्राचीन जातियाँ और सभ्यताएं पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, world

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मध्य-पूर्व पृथ्वी का हमेशा से एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहा है, एक ऐसा हिस्सा जहाँ आज से कई हजार वर्ष पूर्व नील, युप्फ्रेंटिस तथा टाइग्रिस नदियों से सिंचित इस भूमि में रहने वाली कतिपय जातियाँ बनजारा जीवन समाप्त कर सभ्यता के शिखर पर जा पहुंची थीं। बड़े-बड़े नगरों का उन्होंने निर्माण किया था, नगर-राज्य स्थापित किये थे तथा विशाल एवं आलीशान मकानों में रहकर अपनी कलात्मक प्रकृति का परिचय दिया था। ये सारी बातें खुदाई के द्वारा भू-गर्भ से निकले हुए शहरों के अवशेषों, उनके मकानों तथा उनमें प्राप्त सजावट के सामानों, नर-नारियों के श्रृंगार-प्रसाधन की चीजों तथा विलासिता की विभिन्न सामग्रियों से ज्ञात होती हैं । उस धुंधले अतीत काल में उन्होंने धातुओं से वस्तुनिर्माण का कार्य आरम्भ किया था तथा नारियों के पहनने के मुग्दर, नफीस अलंकारों और परिधानों से ऐसा लगता है कि आजकल की फैशनेबुल महिलाओं से वे किसी ऋदर कम शौकीन नही थी तथा इनके निर्माण की कला एक काफी
ने स्तर पर पहुँच चुकी थी। इन जातियों का साहित्य और संगीत का ज्ञान भी परले दर्जे का था । पर इनकी सबसे बड़ी देन लेखन-कला का अविष्कार है। इसी तरह मुद्रा एवं मुद्रा-विनिमय का (जिसकी उपयोगिता को वहीं समझ सकता है जिसने वें दिन देते हैं जब क्रय-विक्रय का माध्यम रुपया नहीं, मंडियों में नाज हुआ करते थे अर्थात् नाज देकर पहनने के वस्त्र आदि आवश्यकताओं की विभिन्न चीजें खरीदी जाती थीं) आरम्भ भी सर्वप्रथम इन्हीं लोगों के द्वारा हुआ। | गरज यह कि मध्य-पूर्व की जिन सुम्य आतियों का उल्लेख इस पुस्तक में हैं। उन्होंने ही ये सारी चीजें सबसे पहले संसार को प्रदान की थीं और उनकी उन्नत सभ्यता का अनुमान इन्हीं से किया जा सकता है।
पर उन जातियों की देन अलग-अलग हैं। प्राचीन मित्र को वह श्रेय है कि उसने संसार को गृह-निर्माण की बारीकियाँ, सुन्दर प्रस्तरमूतियों का निर्माण, प्रशासन के लिए लिखित नियम और सिद्धांत, श्रेणीबद्ध सरकारी पदाधिकारियों की संस्था, काल-क्रम-विज्ञान, रेखागणित, डाक-विभाग आदि चीजें प्रदान की जिनचे संबंध में आज हम सोच भी नहीं सकते कि बगैर उनके हम किस प्रकार

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