हर हरी : औंकार नाथ क्रन्तिकारी | Har Hari : Onkar Nath Krantikari के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : हर हरी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Onkarnath krantikari | Onkarnath krantikari की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Onkarnath krantikari | इस पुस्तक का कुल साइज 36 MB है | पुस्तक में कुल 407 पृष्ठ हैं |नीचे हर हरी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | हर हरी पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu
Name of the Book is : Har Hari | This Book is written by Onkarnath krantikari | To Read and Download More Books written by Onkarnath krantikari in Hindi, Please Click : Onkarnath krantikari | The size of this book is 36 MB | This Book has 407 Pages | The Download link of the book "Har Hari" is given above, you can downlaod Har Hari from the above link for free | Har Hari is posted under following categories dharm, hindu |
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हैं देवताओं जिस समय कोई भी जीव न था, यहाँ तक कि यह ससार, प्रकृति, पुरुष, ब्रह्मा तथा विष्णु आदि भी नहीं थे, उस समय एकमात्र अद्वितीय परब्रह्म, मायारहित, निर्गुण भगवान् सदाशिव ही वर्तमान थे। जिनको वैद नेति-नेति कहकर पुकारते हैं तथा फिर भी जिनकै भेद को नहीं जान पाते। ऐसे निर्गुण स्वरुप शिवजी सृष्टि में सर्वत्र विराजमान है। 'हर' शिवजी के पूर्णाश से उत्पन्न हुए है। तुम दोनों को उनकी सब प्रकार से सेवा करनी चाहिये। शिव लोक में जिन शिवजी का निवास रहता है, वे ही अन्यत्र हर तथा स्ट्स नाम से प्रतिष्ठित है। वे शक्ति सहित अवतार ग्रहण करते हैं। वे ही कैलाश पर्वत पर भी स्थित रहते है। वे मृत्यु को अपने आधीन रखते हैं तथा अनेक प्रकार की लीलाये करके सदेव स्वाधीन रहते हैं। उनके चरित्र को आज तक कोई नहीं जान पाया है। उनकी जो इच्छा होती है, ससार में वहीं कार्य होता है। वेद, पुराण तथा शास्त्र भी उन्हें आज तक नहीं जान पाये। तुम सब उन्हीं की माया द्वारा भ्रमित होकर इधरउधर भटक रहे हो।
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