जैन धर्म | Jain Dharm के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : जैन धर्म है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shri Sampurnanand | Shri Sampurnanand की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Shri Sampurnanand | इस पुस्तक का कुल साइज 10.7 MB है | पुस्तक में कुल 380 पृष्ठ हैं |नीचे जैन धर्म का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | जैन धर्म पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, history
Name of the Book is : Jain Dharm | This Book is written by Shri Sampurnanand | To Read and Download More Books written by Shri Sampurnanand in Hindi, Please Click : Shri Sampurnanand | The size of this book is 10.7 MB | This Book has 380 Pages | The Download link of the book "Jain Dharm " is given above, you can downlaod Jain Dharm from the above link for free | Jain Dharm is posted under following categories dharm, history |
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जैन दर्शन जगत्को सत्य मानता है। यह बात शाङ्कर अद्वैतवाद विरुद्ध तो हैं परन्तु आस्तिक विचारधारासे असंगत नहीं है। उसका अनीश्वरवादी होना भी स्वत. निन्द्य नहीं है। परम आस्तिक साख्य और मीमांसा शास्त्रों के प्रवर्तकोंको भी ईश्वरको सत्ता स्वीकार करनेमें अनावश्यक गौरवकी प्रतीति होती है। वेदको प्रमाण न माननेके । कारण जैन दर्शनकी गणना नास्तिक विचार शास्त्रों में है परन्तु कर्मसिद्धान्त, पुनर्जन्म, तप, योग, देवादि विग्रहोमें विश्वास जैसी कई ऐसी बातें हैं जो योडेसे उलटफेरके साथ भारतीय आस्तिक दर्शनो तथा बौद्ध और जैन दर्शनोको समानरूपसे सम्पत्ति है।