कला सृजन प्रकिया | Kala Srijan Prakriya

कला सृजन प्रकिया | Kala Srijan Prakriya

कला सृजन प्रकिया | Kala Srijan Prakriya के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : कला सृजन प्रकिया है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shiv Karan Singh | Shiv Karan Singh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 54.2 MB है | पुस्तक में कुल 421 पृष्ठ हैं |नीचे कला सृजन प्रकिया का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कला सृजन प्रकिया पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Kala Srijan Prakriya | This Book is written by Shiv Karan Singh | To Read and Download More Books written by Shiv Karan Singh in Hindi, Please Click : | The size of this book is 54.2 MB | This Book has 421 Pages | The Download link of the book " Kala Srijan Prakriya " is given above, you can downlaod Kala Srijan Prakriya from the above link for free | Kala Srijan Prakriya is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 54.2 MB
कुल पृष्ठ : 421

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सृजन-प्रक्रिया सम्बन्धी विचार आज के सतत् परिवर्तनशील साहित्यिक परिवेश में एक बहुत बड़े प्रश्नवाची चिह्न के साथ अवतरित होता है। यह प्रस्तुत बौद्धिक चेतना के लिए सदैव चैलेंज सिद्ध हुआ है। इसे हर काल में सुलझाने का प्रयत्न किया गया है, पर ‘ज्यों-ज्यों सुरझि भज्यो चहत त्यों-त्यों उरझत जाय' की ही कहावत चरितार्थ होती है। आदिकाल से लेकर आज तक अप्रतिहत गति से सतत् प्रवहमान साहित्य-मन्दाकिनी में अपने को निमज्जित करके हम आनन्द का ही अनुभव नहीं करते अपितु इससे जीवन-संदेश पाकर अपने को कृतार्थ भी करते हैं। हम ‘पृथ्वीराज रासो', 'डिवाइन कॉमेडी', 'रामचरित मानस', 'पैराडाइज़ लॉस्ट', 'ग़बन', 'युलिसिज़' आदि का अध्ययन करते हैं, पर इनके सृजन के मूल में लेखक के मन में किस प्रकार की चिताधारा क्रियाशील रहती है, वह किस तरह तोड़-मरोड़ कर अपने विचारों को कलात्मक ढाँचा प्रदान करता है, इस बात को समझने की या तो हम आवश्यकता नहीं समझते या ये बातें हमारे लिए निःसार और निरर्थक ज्ञात होती हैं। पर, वस्तु-सत्य इससे सर्वथा भिन्न है।

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