खोने और पाने के बीच : उपेन्द्र नाथ अश्क | Khone Aur Pane Ke Bich : Upendra Nath Ashk |

खोने और पाने के बीच : उपेन्द्र नाथ अश्क |  Khone Aur Pane Ke Bich : Upendra Nath Ashk |

खोने और पाने के बीच : उपेन्द्र नाथ अश्क | Khone Aur Pane Ke Bich : Upendra Nath Ashk | के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : खोने और पाने के बीच है | इस पुस्तक के लेखक हैं : upendranath ashq | upendranath ashq की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 20 MB है | पुस्तक में कुल 138 पृष्ठ हैं |नीचे खोने और पाने के बीच का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | खोने और पाने के बीच पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Khone Aur Pane Ke Bich | This Book is written by upendranath ashq | To Read and Download More Books written by upendranath ashq in Hindi, Please Click : | The size of this book is 20 MB | This Book has 138 Pages | The Download link of the book "Khone Aur Pane Ke Bich" is given above, you can downlaod Khone Aur Pane Ke Bich from the above link for free | Khone Aur Pane Ke Bich is posted under following categories Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 20 MB
कुल पृष्ठ : 138

यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

प्रकाशकीय
जैसा कि बहुमुखी-प्रतिभा-सम्पन्न रचनाकारों के साथ होता है, अश्क की मूल प्रवृत्ति के संदर्भ में भी पाठको और आलोचकों में मतभेद है कि उनकी मूल प्रवृत्ति उपन्यासकार, की है या नाटककार, कवि, अालोचक अथवा स स्मरणकार की ?
वास्तव में अश्क की मूल प्रवृत्ति एक ऐसे साहियकार की है जो जिन्दगी को उसकी सम्पूर्णता में चित्रित करने का सामर्थ्य और शक्ति रखता हो, जिसके लिए जीवन और साहित्य में, कथनी और करनी में भेद न हो और यह सामर्थ्य ज़िन्दगी को भरपूर जीने से ही आता है।
यही वजह है कि अश्क की रचनाएँ प्रचलित मानदण्डो से ऊपर उठ कर एक निजी पहचान और जीवन्त रचनात्मकता का घेरा निर्मित करती है, जो हर सच्चे रचनाकार का उद्देश्य होता है। इसीलिए अश्क ने कभी विधा की चिन्ता नहीं—अपनी अनुभूति और अपने अनुभव को, उन्होने उसी विधा में अभिव्यक्त किया, जिसमें वह उनके मनोनुकूल अभिव्यक्ति पा सके ।
| अपने रचनात्मक समय का अधिकाश अश्क अपने वृहद उपन्यास 'गिरती दीवारें' का अन्तिम खण्ड पूरा करने तथा अपनी चरित-माला ‘घेरे ; अनेक' के आगामी खण्ड लिखने में लगाते है। लेकिन वे पचपन वर्षों से साहित्य-सर्जना करते आ रहे हैं और दूर-पार के पाठक, शोध छात्र, साथी लेखक विभिन्न मुद्दों पर उनका मत जानने आते हैं। आकाशवाणी के प्रोड्यूसर उनके अपने लेखन के किसी-न-किसी अंग पर प्रकाश डालने का अनुरोध करते हैं । पत्र-पत्रिकाएँ अपने समकालीन के बारे में संस्मरण लिखने का अनुरोध करती है। प्रकट ही इस प्रकिया में लेख, निबन्ध, समालाप, संस्मरण तथा आत्म-स्वीकार उनके कलम
की नोक पर आ जाते हैं। खोने और पाने के बीच इसी तरह की रचनाओं का पाचवा सग्रह है। इससे पहले इसी प्रक्रिया में ज्यादा अपनी : कम परायी,' 'परतो के आरपार,' 'छोटी-सी पहचान' और

Share this page:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *