क्या करें क्या न करें : गीता प्रेस हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Kya Kare Kya Na Kare : Gita Press Hindi Book Free PDF Download

क्या करें क्या न करें : गीता प्रेस | Kya Kare Kya Na Kare : Gita Press

क्या करें क्या न करें : गीता प्रेस | Kya Kare Kya Na Kare : Gita Press

क्या करें क्या न करें : गीता प्रेस | Kya Kare Kya Na Kare : Gita Press के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : क्या करें क्या न करें है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Rajendra Kumar Dhawan | Rajendra Kumar Dhawan की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 7.4 MB है | पुस्तक में कुल 132 पृष्ठ हैं |नीचे क्या करें क्या न करें का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | क्या करें क्या न करें पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, gita-press, hindu, inspirational

Name of the Book is : Kya Kare Kya Na Kare | This Book is written by Rajendra Kumar Dhawan | To Read and Download More Books written by Rajendra Kumar Dhawan in Hindi, Please Click : | The size of this book is 7.4 MB | This Book has 132 Pages | The Download link of the book "Kya Kare Kya Na Kare" is given above, you can downlaod Kya Kare Kya Na Kare from the above link for free | Kya Kare Kya Na Kare is posted under following categories dharm, gita-press, hindu, inspirational |

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पुस्तक का साइज : 7.4 MB
कुल पृष्ठ : 132

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क्या ,
क्या न करें?
(
संडिया)
क्या
॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ।। ‘हिन्दू (सनातन), बौद्ध, ईसाई और मुस्लिम-ये चार धर्म वर्तमान समयमै संसारमें मुख्य माने जाते हैं। इन चारोमॅसे एक-एक धर्मको माननेवालोंकी संख्या करोडोंमें है। इनमें बौद्ध, ईसाई और मुस्लिम-धर्मको चलानेवाले क्रमशः वद्ध ईसा और मोहम्मद माने जाते हैं । ये तीनों ही धर्म अवधीन हैं। परन्तु हिन्दूधर्म किसी मनुष्यके द्वारा चलाया हुआ नहीं है अर्थात् यह किसी मानवीय वद्रिकी उपज नहीं है। यह तो विभिन्न ऋषियोंद्वारा किया। गया अन्वेषण है, खोज उसीकी होती है, जो पहलेसे ही मौजूद हो। हिन्दुधर्म अनादि, अनन्त एवं शाश्वत है। जैसे भगवान् शाश्वत ( सनातन ) हैं, ऐसे ही। हिन्दधर्म भी शाश्वत है। इसीलिये भगवान्ने (गीता १४/२७ में) सनातन। हिन्दुधर्मको अपना स्वरूप बताया है।'
जब-जब हिन्दधर्मका हास होता है, तब-तब भगवान् अवतार लेकर । इसकी संस्थापना करते हैं (गीता ४७-८) ।

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