लामाओं के देश (तिब्बत) में | Lamaon Ke Desh (Tibet) Mein

लामाओं के देश (तिब्बत) में : के. मित्रा | Lamaon Ke Desh (Tibet) Mein : K. Mitra

लामाओं के देश (तिब्बत) में : के. मित्रा | Lamaon Ke Desh (Tibet) Mein : K. Mitra के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : लामाओं के देश (तिब्बत) में है | इस पुस्तक के लेखक हैं : K. Mitra | K. Mitra की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 5.6 MB है | पुस्तक में कुल 77 पृष्ठ हैं |नीचे लामाओं के देश (तिब्बत) में का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | लामाओं के देश (तिब्बत) में पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, Knowledge, world

Name of the Book is : Lamaon Ke Desh (Tibet) Mein | This Book is written by K. Mitra | To Read and Download More Books written by K. Mitra in Hindi, Please Click : | The size of this book is 5.6 MB | This Book has 77 Pages | The Download link of the book "Lamaon Ke Desh (Tibet) Mein" is given above, you can downlaod Lamaon Ke Desh (Tibet) Mein from the above link for free | Lamaon Ke Desh (Tibet) Mein is posted under following categories dharm, Knowledge, world |


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पुस्तक का साइज : 5.6 MB
कुल पृष्ठ : 77

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इरादा कर लिया था। साफ उजाला होते ही हमने देने सवारियों पर खाने-पीने के सामान की गडरियाँ-पोटलियाँ लादकर कहा-“इम अकेले ही जायँगे; तुम दोनों लौट जाओ ।” अब हम आगे बढ़े । इससे वे दोनों बड़ी मुश्किल में पड़े । खुराक का इन्तज़ाम किये बिना उस भयावने रास्ते पर कौन सा बटोही चलेगा ! दोनों ही खड़े होकर न जाने क्या साचने लगे। मौका पाकर इमने फिर कहा-“यही हम लोगों की
आखिरी केशिश है। सफलता न मिलेगी ते लौट चलेंगे । जब इतनी तकलीफ उठाई है तब थोड़ी सी तकलीफ और सही । वेव कुफ ! तीर्थयात्रा इतनी सहज नहीं होती। बेवकूफ बौद्ध है । तिब्बत जाने की लालसा उसे बहुत दिन से थी। एक तो मुफ्त में तीर्थ-यात्रा, उस पर दो सौ रुपये का इनाम ! यह फायदा क्या थे।ड़ा है ? इसका सेचते ही वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। बहादुर भी साथ हो गया। ये हम तीनों साथ-साथ चलने लगे ।
लेकिन यहाँ एक नई मुसीबत सामने आई-वफ जम जाने से रास्ते को पहचानना मुश्किल था। इसलिए बेखटके चलना कठिन है। गया। मैदान की नदी में कमर भर पानी का जिस तरह पार किया जाता है उसी तरह हम लोग बरफ के ठेल-ठेलकर चलने लगे लेकिन चीच-बीच में गड्ढे में पैर पड़ जाने और पत्थर से पैर टकराने पर हम लोग गिरते-पढ़ते चलने लगे। इस तरह कहीं रास्ता तय किया जाता है ? कोई पाँच मील चलने पर ही दिन डूबने का आया। थकावट और ठण्ड के मारे पैर वेकाम है। गये । आस-पास कहीं ठहरने लायक जगह नहीं दीख पड़ती थी। जल्द ही रात होगी, अंधेरा फैलेगा । ताज्जुब नहीं कि बरफ पड़ने लगे । विना चले गुज़र भी नहीं। इधर

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