मनुष्य का विराट रूप | Manushy Ka Virat Roop के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : मनुष्य का विराट रूप है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Anand Kumar | Anand Kumar की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Anand Kumar | इस पुस्तक का कुल साइज 16 MB है | पुस्तक में कुल 334 पृष्ठ हैं |नीचे मनुष्य का विराट रूप का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मनुष्य का विराट रूप पुस्तक की श्रेणियां हैं : society
Name of the Book is : Manushy Ka Virat Roop | This Book is written by Anand Kumar | To Read and Download More Books written by Anand Kumar in Hindi, Please Click : Anand Kumar | The size of this book is 16 MB | This Book has 334 Pages | The Download link of the book " Manushy Ka Virat Roop " is given above, you can downlaod Manushy Ka Virat Roop from the above link for free | Manushy Ka Virat Roop is posted under following categories society |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
एकवार एक मल्लाह नाव में कुछ यात्रियों को लेकर नदी के पार, जारहा था। बीच धारा में एक विचित्र वावा जी दिखाई पड़े। वे खडाऊँ पहने हुये वेखटके पानी पर चल रहे थे। दर्शकों को बड़ा कौतूहल हुआ। मल्लाह ने पूछा-महाराज, यह सिद्धि आपको कैसे और कितने दिनो में मिली है ? बाबा ने गर्व से उत्तर दिया-बेटा, यह पूरे अठारह वर्षों की कठोर तपस्या का फल है। मल्लाह फिर बोला-तब तो आप बडे घाटे में रहे; इतने दिनो की कड़ी मेहनत की यह कमाई तो बहुत थोडी है-खोदा पहाड़ और निकली चुहिया ! आप से अच्छे तो ये लोग है जो दो-दो पैसे देकर आराम से बैठे हुये नदी के पार जारहे हैं। इस दो पैसे की सिद्धि के लिये आपने अपना अमूल्य जीवन नष्ट कर दिया ! बाबा जी लज्जित होकर चले गये।