मुख सरोवर के हंस | Mukh Sarovar Ke Hans

मुख सरोवर के हंस | Mukh Sarovar Ke Hans

मुख सरोवर के हंस | Mukh Sarovar Ke Hans के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : मुख सरोवर के हंस है | इस पुस्तक के लेखक हैं : SHAILESH MATIYANI | SHAILESH MATIYANI की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 6.4 MB है | पुस्तक में कुल 236 पृष्ठ हैं |नीचे मुख सरोवर के हंस का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मुख सरोवर के हंस पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Mukh Sarovar Ke Hans | This Book is written by SHAILESH MATIYANI | To Read and Download More Books written by SHAILESH MATIYANI in Hindi, Please Click : | The size of this book is 6.4 MB | This Book has 236 Pages | The Download link of the book "Mukh Sarovar Ke Hans " is given above, you can downlaod Mukh Sarovar Ke Hans from the above link for free | Mukh Sarovar Ke Hans is posted under following categories Stories, Novels & Plays |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 6.4 MB
कुल पृष्ठ : 236

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मल्लों ने आकाश को कण्ठों की हुँकार से, धरती को पाँवों की पटक से कँपा दिया–“एहो, अन्यायी पंचनाम देवो ! आँख-रहते अन्धे, वचनरहते अन्यायी क्यों बनते हो ? भिक्षा की चुटकी कितनी, दान की मुट्ठी कितनी ? एहो, स्वामिनो ! इस काली कुमाऊ, पाली पछाऊ में, यदि हमने माई के नाम का सत पुकारा, दाता के नाम की अलख जगाई भी, तो हमारे दन्त-छिद्रों को ही भरा जा सके, इतना अन्न उपलब्ध नहीं होगा ।"""जिस घर जायेंगे, झोली फैलायेंगे, हाथ पसारेंगे घर की सांस छोटी मुट्ठीवाली बहू को भिक्षा देने भेजेगी। और, छोटी मुट्ठीवाली बहू को हृदय भी छोटा होगा, कि हमारे पर्वतिया-गात देखेगी, तो . मुट्ठी का अन्न देली (देहली) पर विखेरकर, सास के पास भागेगी ।" और यों, मुट्ठी का अन्न' न फकीर की झोली में, न संन्यासिनी की चोली में' वाली कहावत सामने आयेगी ।''सो, हे पंचनाम देवो !अन्यायी वैन न बोलो, बाँके सैन न करो, कि हमें जन्म दिया है, पालन भी करो । नहीं तो आज पंचाचूनी में हम तुम अन्यायी पंचनाम देवों की गुरुस्थली के स्थान पर गुरु के नाम की भभूत भी नहीं रहने देंगे।''सो अब अपना कल्याण चाहते हो, तो जैसे जनम दिया है, ऐसे ही पालन भी करो, कि या हमको आठ मन का भोजन, चार मन का कलेवा दो, कि या हमको टक्कर का पहलवान बतायो, कि जिससे लड़कर, या तो हम अपने पेट-पर्वतों को अन्न-भण्डार माँगेंगे, कि या अपने इन पर्वतिया-गातों से मुक्ति पाएँगे।

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