नारद भक्ति शाण्डिल्य हिंदी-संस्कृत | Narad Bhakti Shandilya Hindi-Sanskrit

नारद भक्ति शाण्डिल्य हिंदी-संस्कृत | Narad Bhakti Shandilya Hindi-Sanskrit

नारद भक्ति शाण्डिल्य हिंदी-संस्कृत | Narad Bhakti Shandilya Hindi-Sanskrit के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : नारद भक्ति शाण्डिल्य हिंदी-संस्कृत है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 169 KB है | पुस्तक में कुल 16 पृष्ठ हैं |नीचे नारद भक्ति शाण्डिल्य हिंदी-संस्कृत का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | नारद भक्ति शाण्डिल्य हिंदी-संस्कृत पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm

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ज्ञान अथवा भक्ति दोनों ही अङ्ग और दोनों ही अङ्गी हैं किसीको भी प्रधान या गौण माननेमें आपत्ति नहीं है; ऐसी मान्यता 'विकल्प' है। जब एककी प्रधानता निश्चित हो गयी, तब दूसरा अप्रधान है ही प्रधान और अप्रधान–अङ्गी और अङ्गमें 'विकल्प' नहीं होता ज्ञान और भक्ति दोनों एक साथ रहकर ही मुक्तिके साधन होते हैं यह समुच्चयवाद है; उक्त निश्चयसे इसका भी निराकरण हुआ।

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