नारदसंहिता ज्योतिष ग्रन्थ : श्री कृष्णदास | NaradSamhita Jyotish Grantha : Shri krishnadas के बारे में अधिक जानकारी :
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ज्येष्ठ बर और जेठी सैतानकी कन्या इन दोनोंका तथा ज्येष्ठमासमें उत्पन्न हुए वरकन्याओं का विवाह ज्येष्ठमासमें नहीं करना चाहिये ॥ ८॥
उत्पातग्रहणादूर्ध्व सप्ताहमखिलग्रहे ॥ नाखिले त्रिदिनं चझै तदा नेष्टमृतुत्रयम् ॥ ९॥
वज्रपात आदि उत्पात तथा सर्व ग्रहणके अनंतर सात दिन तक | विवाहादि मंगलकार्य करना शुभ नहीं है। सर्व ग्रहण नहीं हो तो तीन दिन पीछेतक और ऋतुकालके उत्पातमें भी तीन दिन पीछेवक शुभ कार्य नहीं करना ॥ ९ ॥
प्रस्तास्ते त्रिदिनं पूर्व पश्चात् ग्रस्तोये तथा ॥ | संध्याकाळे चित्रदिने नि:शेषे सप्तसप्त च ॥ १० ॥
अस्वास्त अणसे पाहिले तीन दिन और वस्ताद्य ग्रहणसे पीछे तीन दिन और संध्याकालमें उत्पात होय तो तीन २ दिन बाकी | सर्व दिनमें सात २ दिन वजित जानो ॥ १० ॥
मासांते पंचदिवसांत्यजेद्रिक्तां तथाष्टमीम् ॥ पड़ीं च परिचाह्यर्द्ध व्यतीपातं संवैधृतिम् ॥ ११ ।।। मासांतमें पांच दिन, रिक्ता तिथि, अष्टमी षष्ठी परिघ योग के आदिका आधा भाग वैधृति, पतीपात संपूर्ण, इनको विवाहदिक संपूर्ण कार्यों में वर्ज देवे ॥ ११ ॥
पौष्णभत्र्युत्तरामैत्रमरुचंद्रार्कपैतृभम्॥ समूलभं विधर्भ च स्त्रीकरग्रह इष्यते ॥ १२ ॥
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