एक महात्मा का प्रसाद | Ek Mahatma Ka Prasad

एक महात्मा का प्रसाद : हनुमानप्रसाद पोद्दार | Ek Mahatma Ka Prasad : Hanuman Prasad Poddar

एक महात्मा का प्रसाद : हनुमानप्रसाद पोद्दार | Ek Mahatma Ka Prasad : Hanuman Prasad Poddar के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : एक महात्मा का प्रसाद है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Hanuman Prasad Poddar | Hanuman Prasad Poddar की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 7.7 MB है | पुस्तक में कुल 296 पृष्ठ हैं |नीचे एक महात्मा का प्रसाद का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | एक महात्मा का प्रसाद पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, inspirational

Name of the Book is : Ek Mahatma Ka Prasad | This Book is written by Hanuman Prasad Poddar | To Read and Download More Books written by Hanuman Prasad Poddar in Hindi, Please Click : | The size of this book is 7.7 MB | This Book has 296 Pages | The Download link of the book "Ek Mahatma Ka Prasad" is given above, you can downlaod Ek Mahatma Ka Prasad from the above link for free | Ek Mahatma Ka Prasad is posted under following categories dharm, inspirational |


पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 7.7 MB
कुल पृष्ठ : 296

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वास्तवमें हो यह संसार प्राणीको ईशरसे प्रेम करना और उनसे सम्बन्ध जोड़ना सिखानेवाला कालेज है। इससे यह शिक्षा लेकर कि प्राणी जिस्को अपना मानता है, उसीचे उसका प्यार होता है। साधकको चाहिये कि संसारसे सर्वथा निराश होकर अपने नित्य-सम्बन्धीको अपना मानकर कमात्र उससे प्रेम करे ।
शरीर और संसारसे सम्मुन्ध-विच्छेद करने के लिये तीन उपाय हैं..
१. शरीर और संसार क्षणभङ्गुर हैं, अतः छानित्य हैं, यह जानकर उनसे प्रसन्न हो जाना ।
२. शरीर और संसार के अधिकारकी रक्षा करते हुए अपने कर्तव्य-पालनद्वारा उनकी सेवा करके ऋण मुक्त हो जाना एवं इनपर अपना कोई अधिकार न मानना और भया ऋण न लेना देव उनसे कुछ मी न चाइना ।। । ३. शरीर और सँसारसे में न तो जातीय सम्बन्ध है, न खरूपसे ही सम्बन्ध हैं । इस रहस्यको समझकर, जिससे अपनी जातोय और स्वरूपकी एकता है, जो अपना नित्य सम्बन्ध है, उसके भूले हुए सम्बन्धको स्मरण घर लेना।
उपर्युक्त उपायों के द्वारा शरीर और संसारसे सम्बन्ध विच्छेद | कर देना चाहिये । जब संसार स्वयं हमसे सम्बन्ध-विच्छेद कर देगा ! और कर रहा है, तब फिर में उससे सम्ध की आशा क्यों करें ?
मनुष्यकी सुस्त आशाएँ संसार में किसी एकसे पूरी नहीं हो सकती । अनेक व्यक्ति, वस्तु और परिस्थितियोंसे जो कुछ आशाकी

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